भावना का फल

एक नदरि करि वेखै सभ ऊपरि जेहा भाउ तेहा फलु पाईऐ।। सतिगुरू सदा दइआलु है भाई विणु भागा किआ पाईऐ।। इसे समझाते हुए बाबा नंद सिंह साहिब ने एक पावन साक्ष्य सुनाया। भाई बाला जी गुरु अंगद पातशाह से एक प्रश्न करते हैं कि- सच्चे पातशाह! कभी एक शंका मेरे मन में आती है, यदि आज्ञा हो तो क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ! श्री गुरु अंगद साहिब भाई बाला जी का बहुत सम्मान करते थे, वे बोले- आपको किस बात का संकोच है, निर्भय होकर पूछो। इस पर भाई बाला जी बोले,- सच्चे पातशाह! मैं बहुत दिनों तक गुरु नानक पातशाह के साथ रहा हूँ, उनकी सेवा की है, हाजिरी भरी है, उनका पूजन किया है, उन्हें प्रसन्न किया है, उन्हें रिझाया है और उन्हें किसी भी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया है। सच्चे पातशाह, आप थोड़े समय के लिए उनके संग में रहे और बड़ी खुशी की बात है कि वे आप पर महान बख़्शीश कर गए हैं। मेरे मन में शंका आ जाती है कि मेरे से कहीं भूल तो नहीं हुई, कोई गलती तो नहीं हो गई । भाई बाला जी पूछ रहे हैं तो गुरु अगंद साहिब उनकी ओर देखकर फरमाने लगे- बालाजी आपने किस भा...