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Showing posts from August, 2022

भावना का फल

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  एक नदरि करि वेखै सभ ऊपरि  जेहा भाउ तेहा फलु पाईऐ।।  सतिगुरू सदा दइआलु है भाई  विणु भागा किआ पाईऐ।। इसे समझाते हुए बाबा नंद सिंह साहिब ने एक पावन साक्ष्य सुनाया।  भाई बाला जी गुरु अंगद पातशाह से एक प्रश्न करते हैं कि-  सच्चे पातशाह! कभी एक शंका मेरे मन में आती है, यदि आज्ञा हो तो क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ!  श्री गुरु अंगद साहिब भाई बाला जी का बहुत सम्मान करते थे, वे बोले- आपको किस बात का संकोच है, निर्भय होकर पूछो।  इस पर भाई बाला जी बोले,- सच्चे पातशाह! मैं बहुत दिनों तक गुरु नानक पातशाह के साथ रहा हूँ, उनकी सेवा की है, हाजिरी भरी है, उनका पूजन किया है, उन्हें प्रसन्न किया है, उन्हें रिझाया है और उन्हें किसी भी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया है।  सच्चे पातशाह, आप थोड़े समय के लिए उनके संग में  रहे और बड़ी खुशी की बात है कि वे आप पर महान बख़्शीश कर गए हैं। मेरे मन में शंका आ जाती है कि मेरे से कहीं भूल तो नहीं हुई, कोई गलती तो नहीं हो गई । भाई बाला जी पूछ  रहे  हैं तो गुरु अगंद साहिब उनकी ओर देखकर फरमाने लगे- बालाजी आपने किस भा...

श्री गुरु अर्जुन देव जी की विनम्रता

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एक बार बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र मुखारविन्द से ज्ञान-अमृत की धारा इस प्रकार निकली-      श्री गुरु अर्जुन देव जी के गुरु-गद्दी पर विराजमान होने की खबर देश-देशान्तर में फैल गयी। दूर-दूर से श्रद्धालु संगत पाँचवे गुरु नानक पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव के दर्शनों के लिए अमृतसर में आनी शुरु हुईं।       गुरु जी के दर्शन के लिए काबुल की संगत भी अमृतसर की ओर आ रही थी। दर्शनों के लिए व्याकुल हुई संगत ने आख़िरी दिन सुबह-सवेरे यह अरदास-कामना की कि वे शाम के दीवान में गुरु साहब के दर्शनों के बाद ही लंगर का प्रसाद लेंगे। ऐसा विचार करके वे अपने आख़िरी पड़ाव से शीघ्रता से रवाना हुए। पर वृद्ध पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के साथ होने के कारण, संगत जब श्री हरमन्दिर साहब से कुछ मील की दूरी पर थी, तो रास्ते में ही रात हो गयी। दिन के सफर से वे स्वयं को थके-थके और भूखे महसूस कर रहे थे।      इधर श्री गुरु अर्जुन साहब जी अपनी जीवन-संगिनी, माता गंगा जी को अपने हाथ से तरह-तरह के भोजन पदार्थ तैयार करने के लिए कह रहे थे। भोजन सामग्री तैयार हो गयी। श्री गुरु...

गुरु दक्षिणा

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    बाबा नंद सिंह साहिब ने वचन शुरु किए- राज है जी राज। राजा बड़ा धरमी है। राज में व्रत का पालन हो रहा है, सारी प्रजा ने व्रत रखा हुआ है।  वजीर ने आकर शिकायत की कि- एक घर से धुआँ निकल रहा है। राजा ने उसे बुला भेजा है।  जब वह आकर खड़ा हो गया तो राजा पूछने लगा -  भाई आज हमारी सारी प्रजा ने व्रत रखा है, पर एक तुम ही   हो जिसके घर से धुआँ निकल रहा है ।  हम क्या आपसे पूछ सकते हैं कि इसकी वजह क्या है?  वह हाथ जोड़कर विनती करता है कि- हे राजन! मुझे पूरे गुरु की प्राप्ति हुई है।  यह सुनकर राजा चकित हुआ कि पूरे गुरु की प्राप्ति हुई है!  उसने कहा कि - राजन मेरे गुरु ने मुझसे हमेशा के लिए व्रत रखवा लिया है।  इसे सुनकर तो राजा और हैरान हुआ, उसके मुख से निकला व्रत और रोज का व्रत?  जी हाँ, राजन! मेरे पूरे गुरु ने मुझसे बुरे कर्मों से सदा के लिए दूर रहने का व्रत रखवा लिया है। मेरे गुरु का उपदेश है कि थोड़ा बोलो, थोड़ा सोना और थोड़ा खाओ। मैं एक बार थोड़ा सा  खाना  ग्रहण करता हूँ, यही मेरा रोज का आहार है। फिर गुरु का यह भी उपद...

बाबा नन्द सिंह जी महाराज की विनम्रता

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  एक बार की बात है कि- एक गरीब कारीगर सिंह ने लोहे का एक लोटा बनाया और बाबा नन्द सिंह जी महाराज जी के चरणों में पेश करने के लिए ठाठ पर पहुँचा। संगत में बैठ कर गुरु नानक पातशाह की इलाही शान का आनंद मान रहा है परन्तु उस इलाही शान में एक तुच्छ भेंट को बाबा जी के चरणों में पेश करने की हिम्मत ही नहीं हुई और संकोच कर गया।  सुबह के दीवान के बाद जब अंतर्यामी बाबा जी उठे तो संगत के पास से गुजरते हुए उस सिंह के पास जा कर रुक गए और फ़रमाया- यह लोटा बहुत सुन्दर है।  कहाँ से बनवाया है ?  उस गरीब कारीगर ने आगे से उत्तर देते हुए कहा - जी मैंने खुद बनाया है।            बाबा जी ने फ़रमाया- यार, एक ऐसा लोटा मुझे भी बना दो।  कारीगर सिंह बाबा जी के चरणों में गिर गया और रोते हुए कहने लगा कि- गरीब निवाज़ पातशाह, मैं यह लोटा आप ही की सेवा के लिए बना के लाया था।    अन्तर्यामी बाबा जी ने फ़रमाया- तो फिर संकोच कैसा? देता क्यों नहीं ? बाबा नन्द सिंह जी महाराज ने लोटा हाथ में पकड़ कर पूछा-        बता इस का क्या दे ? आगे से उस गरीब...