बाबा नन्द सिंह जी महाराज की विनम्रता

 एक बार की बात है कि-



एक गरीब कारीगर सिंह ने लोहे का एक लोटा बनाया और बाबा नन्द सिंह जी महाराज जी के चरणों में पेश करने के लिए ठाठ पर पहुँचा। संगत में बैठ कर गुरु नानक पातशाह की इलाही शान का आनंद मान रहा है परन्तु उस इलाही शान में एक तुच्छ भेंट को बाबा जी के चरणों में पेश करने की हिम्मत ही नहीं हुई और संकोच कर गया। 

सुबह के दीवान के बाद जब अंतर्यामी बाबा जी उठे तो संगत के पास से गुजरते हुए उस सिंह के पास जा कर रुक गए और फ़रमाया-

यह लोटा बहुत सुन्दर है।  कहाँ से बनवाया है ?

 उस गरीब कारीगर ने आगे से उत्तर देते हुए कहा -

जी मैंने खुद बनाया है।         

 बाबा जी ने फ़रमाया-

यार, एक ऐसा लोटा मुझे भी बना दो। 

कारीगर सिंह बाबा जी के चरणों में गिर गया और रोते हुए कहने लगा कि-

गरीब निवाज़ पातशाह, मैं यह लोटा आप ही की सेवा के लिए बना के लाया था।  

 अन्तर्यामी बाबा जी ने फ़रमाया-

तो फिर संकोच कैसा? देता क्यों नहीं ?

बाबा नन्द सिंह जी महाराज ने लोटा हाथ में पकड़ कर पूछा-       

बता इस का क्या दे ?

आगे से उस गरीब मिस्त्री ने विनती की -

पातशाह, मेरा कल्याण कर दीजिये।  

उस समय जो कल्याणकारी और परोपकारी महान वचन बाबा नन्द सिंह जी महाराज जी के पावन मुखारबिंद से निकले, वह यह हैं -

छोड़ यह सब , कोई काम की बात कर। 

 कल्याण तो हमारे निंदकों का भी हो जायेगा, वह हमें याद तो करते हैं।  


निंदकों का भी उद्धार करने वाले बाबा नन्द सिंह जी महाराज जी के दिव्य व्यक्तित्व के बारे में कुछ और वचनों से भी पता चलता है। 


एक बार बाबा नन्द सिंह जी महाराज वचन करते हुए विनम्रता के गुण बता रहे थे -

किसी ने बीच  में ही पूछ लिया कि-

महाराज करामात क्या है ?

तो बाबा जी ने फ़रमाया-

विनम्रता ही सब से बड़ी करामात है। जितनी विनम्रता होगी उतनी ही बड़ी करामात।  


बाबा नरिंदर सिंह जी समझाते हुए कहा करते थे- 


१. रावण बहुत शक्तिशाली था, बहुत करामाती था।  चारों वेदों का ज्ञाता था, बड़ा तपस्वी था।  

    इतना सब कुछ होते हुए भी विनम्रता और गरीबी नहीं थी।  देखो उस का क्या हाल हुआ?


२. हिरण्यकश्यप (भक्त प्रहलाद के पिता) ने कठिन तपस्या कर के सारे वर लिए।  

    इतनी शक्ति होते हुए भी  विनम्रता और गरीबी नहीं थी।  देखो उस का क्या हाल हुआ? 


३. औरंगज़ेब के पास बहुत शक्ति थी, खुदा की इबादत करता था 

                                            परन्तु विनम्रता और गरीबी नहीं थी।  देखो उस का क्या हाल हुआ?


गुरु नानक दाता बख्श  लै, बाबा नानक बख्श लै।

(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 3)


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