अपने स्वामी की प्रशंसा में सब कुछ दांव पर लगा दो।

दास अपने मकान नं. 203, सैक्टर 33ए, चण्डीगढ़ के लॉन में कुर्सी पर बैठा हुआ सोच रहा था कि पिताजी के व्यक्तिगत अनुभवों पर बाबा नंद सिंह जी महाराज की शान में एक पुस्तक लिखूँ। सामग्री के रूप में थे उनके कुछ व्यक्तिगत अनुभव, आपबीती घटनाएँ और पिता जी के वे अनमोल वचन जो मैंने कापियों में नोट कर लिए थे। फिर ख़याल आया कि पुस्तक मेरे साहिब, मेरे मालिक श्री गुरुनानक पातशाह और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की शान के अनुकूल होनी चाहिए। यह सोचा ही था कि बाबा नंद सिंह जी महाराज की दरगाही आवाज़ सुनाई दी-

इस संसार में अभी तक ऐसा कोई कागज नहीं बना जिस पर प्रभु को उतारा जा सके।

दिल में बहुत अफ़सोस हुआ कि मैं बड़ी गलत बात सोच रहा था।

फिर बाबा जी की ईश्वरीय वाणी सुनाई दी- 
हाँ, एक कागज़ ऐसा है जिस पर परमात्मा का नाम उतारा जा सकता है वह है आत्म केवल आत्म पर ही परमात्मा को उतारा जा सकता है।

फिर ख़याल आया कि यह तो भक्ति की सब से ऊँची अवस्था है क्योंकि आत्म तक पहुँचना और आत्म रस लेना, एक साधारण पुरुष के लिए बहुत ही असंभव बात है।
सच ता पर जाणिए जा आतम तीरथ करे निवास
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 462
आतम रस जिह जानही सो है खालस देव
प्रभु महि सो महि तासु महि रंचक नाहन भेव
श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी

मैं अभी सोच में डूबा ही हुआ था कि फिर महान बाबा नंद सिंह जी महाराज की वाणी सुनाई दी-
हाँ, एक बार परमात्मा स्वयं इस धरती पर आया था और उसने स्वयं को कागज़ पर उतारा था (संकेत श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति था)। पर दुनिया अभी तक उसे केवल (एक कागज़) एक पुस्तक ही समझती है।

 यह दृश्य समाप्त हो गया। कुछ दिनों के बाद उसी स्थान पर बैठा था कि बाबा हरनाम सिंह जी महाराज की आकाशवाणी गूँजी-

बाबा नंद सिंह जी महाराज कभी अपने गुण-गान की आज्ञा नहीं देंगे। पर एक शिष्य का सब से बड़ा कर्त्तव्य यह है कि अपने इष्ट, अपने मालिक के गुणगान और प्रचार के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दे।

 यह सुन कर बहुत ही उत्साह बढ़ा। ऐसा महसूस हुआ कि बाबा हरनाम सिंह जी महाराज ने इस शुभ कार्य के लिए मेरे तन, मन और आत्मा को अपनी दिव्य शक्ति से भर दिया है।

मैं इस हर्ष और प्रसन्नता की घड़ी में फूला नहीं समा रहा था। मन को प्रोत्साहित करने वाले पिता जी के दिव्य शब्द सुनाई दिए-
हम हैं बाबा नंद सिंह जी महाराज के कुत्ते, हमें अपने मालिक के प्यार में भौंकना ही भौंकना है। पुस्तक लिखो, अति विनम्रता व प्रेम से लिखो। याद रखना कागज़ में कोई शक्ति नहीं होती। शक्ति क्रियाशील होगी बाबा नंद सिंह जी महाराज की। उस शक्ति का चमत्कार इंसानी दिमाग़ की पकड़ से बहुत ऊँचा है।

 साधसंगत जी, इस प्रकार ये पुस्तकें आपके हाथों में पहुँच रही हैं। बाबा नंद सिंह जी महाराज का नाम सब से पवित्र नाम है और लेखक के हाथ सब से अपवित्र हैं। फिर भी पढ़ते हुए यदि हृदय में दया उभरे तो सभी अक्षम्य न्यूनताओं, भूलों और कमियों को अनदेखा करते हुए इस कूकर (कुत्ते) को क्षमा कर दीजिएगा।

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 2)

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