सतिगुर सुख सागरु जग अंतरि॥

इस युग में निरंकार ने ‘पोथी साहिब’ का रूप धारण किया है। ‘पोथी परमेसर का थानु’ - परमेश्वर ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का रूप धारण किया है । इस सृष्टि में, इस संसार में यह सबसे आश्चर्यजनक घटना है। निरंकार निराकार है, उसका कोई आकार नहीं। जिस समय भी निरंकार इस मर्त्यलोक में, इस संसार में अवतार धारण करके, रूप ले के आता है तो सतिगुरु के रूप में ही आता है। पहले वे गुरु नानक पातशाह के रूप में आए, फिर ‘पोथी साहिब’ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का रूप धारण किया है। सतिगुरु सुख सागरु जग अंतरि होर थै सुखु नाही ॥ हउमै जगतु दुखि रोगि विआपिआ मरि जनमै रोवै धाही ॥ श्री गुरु अमरदास जी श्री गुरु ग्रंथ साहिब अंग 603 निरंकार सुखों का सागर है । गुण निधान सुख सागर सुआमी जलि थलि महीअलि सोई ॥ जन नानक प्रभ की सरणाई तिसु बिनु अवरु न कोई ॥ श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 782 जिस समय निरंकार सतिगुरु का स्वरूप धारण कर के संसार में आता है तो वही सतिगुरु स्वयं में ही सुख सागर है। मेरे सहिब सरताज श्री गुरु अमरदास जी अपनी अमृतवाणी में इस प्रकार फरमाते हैं- सतिगुरु सुख सागरु जग अंतरि होर थै सुखु नाही ॥ ...