सतिगुर सुख सागरु जग अंतरि॥
इस युग में निरंकार ने ‘पोथी साहिब’ का रूप धारण किया है। ‘पोथी परमेसर का थानु’ - परमेश्वर ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का रूप धारण किया है। इस सृष्टि में, इस संसार में यह सबसे आश्चर्यजनक घटना है।
निरंकार निराकार है, उसका कोई आकार नहीं। जिस समय भी निरंकार इस मर्त्यलोक में, इस संसार में अवतार धारण करके, रूप ले के आता है तो सतिगुरु के रूप में ही आता है। पहले वे गुरु नानक पातशाह के रूप में आए, फिर ‘पोथी साहिब’ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का रूप धारण किया है।
सतिगुरु सुख सागरु जग अंतरि होर थै सुखु नाही ॥
हउमै जगतु दुखि रोगि विआपिआ मरि जनमै रोवै धाही ॥
गुण निधान सुख सागर सुआमी जलि थलि महीअलि सोई ॥
जन नानक प्रभ की सरणाई तिसु बिनु अवरु न कोई ॥
सतिगुरु सुख सागरु जग अंतरि होर थै सुखु नाही ॥
सारा संसार ही सुख की कामना करता है। कोई अच्छे-बुरे जितने भी कर्म करता है, उन्हीं में सुख ढूँढ़ता है। किसी को कोई व्यसन लगा है तो वह उसी व्यसन में सुख ढूँढ़ रहा है, पर असली सुख सागर तो वह सतिगुरु निरंकार है।
निरंकार ही उन सारे सुखों को लेकर सतिगुरु के रूप में इस संसार में आते हैं। वह स्वयं में निर्गुण हैं पर सर्गुण का स्वरूप धारण कर सारे गुणों को लेकर संसार में आता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सच्चे पातशाह श्री गुरु अमरदास जी फरमा रहे हैं-सतिगुरु सुख सागरु जग अंतरि होर थै सुखु नाही ॥
सच्चे पातशाह श्री गुरु अंगद साहिब और श्री गुरु नानक पातशाह उन सुखों के सागर हैं क्योंकि जिस समय भी निरंकार आता है तो सुख के सागर-निधि वह सतिगुरु के रूप में इस धरती पर अवतरित होता है।
अनद रूप मंगल सद जा कै ॥ सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै ॥
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 917
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