शहीदी
श्री गुरु अरजन देव जी अपने पवित्र जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य के अनुरूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना करके, उसे श्री हरमंदिर साहिब में प्रकाशित करके अद्वितीय महान शहादत का मार्ग अपनाते हैं।
गुरु नानक के दर-घर में पांचवें गुरु नानक सबसे पहले महान शहादत के मार्ग पर चलते हैं। गुरु जी इलाही आनंद और आलौकिक धैर्य के साथ तत्ती तवी (गर्म तवे) पर बैठे हैं। उनके पवित्र सीस पर लगातार गर्म रेत डाली जा रही है, उनके मन में कोई क्रोध या आक्रोश नहीं है, कोई दुश्मनी नहीं है। परमात्मा के मीठे भाणे (आज्ञा) से चेहरे पर नूर चमक रहा है। आप मानव जाति का सारा ज़ुल्म, दुख और दर्द को खिड़े मत्थे (बिना किसी शिकायत) सहन कर रहे हैं।
संसार की दुष्ट और विनाशकारी शक्तियों को हराने के लिए पैगम्बर के महान बलिदान की आवश्यकता होती है। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने यह विचार उस समय व्यक्त किया था जब पंडित कृपा राम के नेतृत्व में पाँच सौ कश्मीरी पंडितों ने अपनी सुरक्षा के लिए अनुरोध किया था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बालपन में ही श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के महान बलिदान के संकल्प को चेताया था।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में साधकों को अमृत और रस का सागर प्रदान करने के बाद, अब स्वयं गुरु नानक के बच्चों को बलिदान और शहादत की दया का अमृत प्रदान कर रहे हैं। यह शाश्वत जीवन का प्रेरणादायक और अभूतपूर्व प्रारंभ और संकेत था।
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने अपने प्रिय सिक्खों - भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी के साथ ईश्वर के द्वार पर एक महान बलिदान दिया था। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को शाश्वत गुरु का दर्जा देने से पहले अपने प्यारे साहिबजादों और अनगिनत सिक्खों सहित अपना सब कुछ बलिदान कर दिया था।
श्री गुरु नानक देव जी के शाश्वत रूप से प्रकट होने का स्वर्ण युग श्री गुरु अरजन देव जी के जीवन काल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना और श्री हरमंदिर साहिब जी में उनकी प्रकाश के साथ शुरू हो चुका था।
- श्री गुरु अरजन देव जी ने हमें मृत्यु से प्रेम करने का पाठ पढ़ाया है।
- उन्होंने हमें शहादत की तीव्र इच्छा रखने की शिक्षा दी है।
- गुरु साहिब ने हमें घोर मानवीय पीड़ा, दर्द और मृत्यु के समय आध्यात्मिक आनंद में रहने की अलौकिक शिक्षा दी है।
- उन्होंने सबसे भयानक और क्रूर मृत्यु के समय ईश्वर की इच्छा को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर महान आशीर्वाद और आनंद प्राप्त करने का एक महान उदाहरण प्रस्तुत किया है।
मैकलाफ़ ने लिखा है -
श्री गुरु अरजन देव जी ने एक बार भी "सी" नहीं की और न ही अत्याचार करने वालों को कोई अपशब्द कहा या उनके प्रति किसी दुर्भावना का कोई संकेत दिया था।
धंन गुरु अरजन देव साहिब जी
(To be continued next week)
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