इकु तिलु नही भंनै घाले ॥ (2)
प्रभ भावै बिनु सास ते राखै ॥ सन 1979 में आर्मी हैडक़्वाटर दिल्ली में, मैं ब्रिगेडियर के पद पर कार्यरत था। मेरे साथी ब्रिगेडियर जगमोहन सिंह आध्यात्मिक विचारों के व्यक्ति थे और वे भी हैडक़्वाटर पर नियुक्त थे। उनका कार्यालय मेरे कार्यालय के निकट ही था। एक अच्छे मित्र के नाते से प्रायः दोपहर के खाने पर वे मेरे पास आ जाते या फिर मैं उनके पास चला जाता था। आम तौर पर दोपहर का भोजन हम एक साथ करते और आध्यात्मिक वार्तालाप में ही उस समय को व्यतीत करते थे। एक दिन उनके साथ उनके डिप्टी कर्नल पी. सी. सोंधी भी मेरे कार्यालय में पहुँचे। इस हस्तक्षेप के लिए पहले तो उन्होंने क्षमा माँगी और फिर खाने में सम्मिलित होने के लिए विनीत इच्छा व्यक्त की। उनका कहना था कि वे भी आध्यात्मिक वार्तालाप का लाभ उठाना चाहते हैं। मैंने आदरपूर्वक उनकी इच्छा के प्रति ‘जी आइयाँ’ (स्वागत है) कहा और निवेदन किया कि उनके अब तक के जीवन काल में आध्यात्मिक स्तर पर यदि कोई घटना घटी है तो उसका वृतान्त वे हम से अवश्य सांझा करें। उनके साथ यह मेरी पहली मुलाकात थी। उन्होंने अपना एक अनोखा अनुभव हमें इस प्रकार सुनाया- मै...