श्रद्धा और मर्यादा
एक बार बाबा नरिन्दर सिंह जी ने फरमाया-
श्रद्धा से मर्यादा बनती है और मर्यादा से श्रद्धा बनती है।
फिर स्वयं आपने ही इसका अर्थ इस प्रकार समझाया-
साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर बाबा नंद सिंह जी महाराज की अनुपम और सर्वोच्च श्रद्धा ने स्वयं ही मर्यादा का रूप धारण कर लिया। कौन सी श्रद्धा?
- श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर ‘प्रत्यक्ष गुरुओं की देह’ वाली श्रद्धा।
- श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर ‘जीते-जागते-बोलते गुरु नानक’ की श्रद्धा।
- श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर ‘हलत-पलत के रक्षक व लोक-परलोक के सहायक’ की श्रद्धा।
- श्री गुरु ग्रंथ साहिब पर ‘नाम के जहाज़ व कलियुग के बोहिथ’ (बड़ी नौका) वाली श्रद्धा।
यह श्रद्धा ही बाबा नंद सिंह जी की मर्यादा की रूप-रेखा में ढल गई। बाबा नंद सिंह जी महाराज का सारा जीवन ही इस श्रद्धा का रूप और निखार है। बाबा नंद सिंह जी महाराज की अतुलनीय आचरित मर्यादाओं पर चलते हुए इसी पावन मर्यादा में ही एक साधारण पुरुष की श्रद्धा बंध जाती है। बाबा नंद सिंह जी महाराज के मुबारिक वचन सार्थक होने लगते हैं। कौन से वचन?
गुरु नानक के दर से श्रद्धा वाले ही सब कुछ कमा कर ले जाते हैं।
बाबा नंद सिंह जी महाराज
भक्ति दो प्रकार की होती है एक मर्यादा भक्ति दूसरी प्रेमा भक्ति। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब (प्रत्यक्ष गुरु नानक पातशाह) के साथ शिखरस्थ प्रेम किया है। उनका यह प्रेम सूर्य सरीखी मर्यादा बनकर चमक रहा है। यही कारण है कि उनकी मर्यादा में रंगे प्रेमी मर्यादा की हर लहर से अलौकिक प्रेम का आनंद उठाते हैं।
बाबा हरनाम सिंह जी महाराज
सभ ते वडा सतिगुरु नानकु जिनि कल राखी मेरी ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 750
सतिगुरु नानक पातशाह के प्रति श्रद्धा, विश्वास और निश्छलता (सिदक) में सच्चा सिक्ख सदा ही डूबा रहता है। उसके लिए तो सिदक, विश्वास और भरोसा ही सब कुछ है। विश्वास ही उस का धर्म है, विश्वास ही उस का ध्यान है, विश्वास ही उस का कर्म है।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 285
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 864
नम्रता से भरा हुआ एक सच्चा सिक्ख ज्ञान का भंडार, ध्यान की मूर्ति और उत्तम कर्म योगी होते हुए भी यही विनती करता रहता है-
हे सच्चे पातशाह!
- मैंने ज्ञान से क्या लेना है।
- मेरा ध्यान से क्या संबंध है ।
- कर्म से भी मेरा क्या व्यवहार है।
सच्चे पातशाह! हे गुरु नानक, मेरा तो सब कुछ तूँ ही तूँ है।
पूरन करमु होइ प्रभ मेरा ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 742
Comments
Post a Comment