गुरु दाता जुग चारे होई ॥
इस संसार में आदिकाल से ही दो चक्र, दो डोर एक साथ चल रहे हैं। एक काल का, दूसरा निराकार के प्रकाश का। इस समय काल में ही चारों युगों का चक्र चल रहा है।
साहिब फरमाते हैं -
हर युग में निरंकार सतिगुरु का स्वरुप धारण कर के अवतरित होता है।
साहिब श्री गुरु अमरदास जी सच्चे पातशाह फरमाते हैं -
गुरु दाता जुग चारे होई ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 230
जुगि जुगि सतिगुर धरे अवतारी ॥
भाई गुरदास जी
चारों युगों में साहिब सतिगुरु के स्वरूप में आते हैं। भगवान कृष्ण फरमाते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है, हम स्वयं आते हैं।
धर्म क्या है?
धर्म वह प्रकाश है, ईश्वर द्वारा दिखाया गया वह मार्ग है, जिस मार्ग को वह स्वयं आकर प्रकाशित करता है और यह जो प्रकाश की डोर चल रही है, जो इस प्रकाश का चक्र चल रहा है, उसमें वह हर युग में स्वयं आकर ...
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 660
...नए से नए रंग भरता है, लेकिन धर्म के प्रकाश में यह नए रंग भरता है।
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