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Showing posts from July, 2022

गुरु नानक को कहां खोजें?

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   होहु सभना की रेणुका तऊ आऊ हमारे पासि ॥ साध संगत जी, एक बार बाबा नन्द सिंह साहिब ने एक साखी सुनाई - कहने लगे - एक बार बाबा श्रीचंद जी अमृतसर तशरीफ़ लाये।  श्री गुरु रामदास जी सच्चे पातशाह ने उनकी बहुत आवभगत की।  उनके चरणों में बहुत ही सत्कार सहित बैठे, बहुत आदर किया।  अपने दाढ़ी से उनके चरण पौंछे, उन्हें साफ़ किया।  उस समय जब बाबा श्रीचंद जी ने गुरु रामदास जी की यह विनम्रता और गरीबी देखी  तो गुरु रामदास जी को एक प्रसंग सुनाया।   कहने लगे - एक बार हमने अपने निरंकार पिता गुरु नानक देव जी से उनके अंतिम समय यह पूछा कि-  सच्चे पातशाह यदि आप को खोजना  हो तो कहां खोजें ?  तो आगे से निरंकार पिता ने उत्तर दिया- श्री चंद यदि हमें ढूंढ़ना हो तो इस ब्रह्माण्ड के पैरों की खाक में हमें ढूंढ लेना।  साध संगत जी, फिर बाबा श्री चंद जी ने गुरु रामदास जी को निहारते हुए फ़रमाया- आप में हमारे निरंकार पिता की वही विनम्रता और गरीबी है।   फिर हाथ जोड़ कर तीन बार कहा - धन्य गुरु गुरु रामदास!!!  धन्य गुरु गुरु रामदास!!!  धन्य गुरु गु...

गृहस्थ मार्ग - सन्यासी कौन है?

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 यह प्रसंग समस्त इलाही ज्योति बाबा नन्द सिंह जी महाराज भाग -3 में से ली गई है।   बाबा नन्द सिंह जी महाराज स्वयं भले ही आजीवन जती-सती (ब्रह्मचारी) रहे, परन्तु उन्होंने दूसरों को सदैव गृहस्थ जीवन अपनाने का उपदेश दिया।  संसार के सभी महान त्यागियों के वह  शहंशाह रहे। उन्होंने सदैव दूसरों को सच्चाई, पवित्रता और ईमानदारी के उच्च सिद्धांतों का अनुकरण करते हुए अपनी रोज़ी-रोटी कमा कर जीवन यापन करने  का उपदेश दिया।     बाबा नन्द सिंह जी महाराज ने एक बार एक साखी सुनाई - दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का दरबार सजा है।  कुछ वान-प्रस्थियों की  एक मंडली वहां पहुंची तो बड़े सत्कार से उन्हें बिठाया गया।  दीवान के बाद  उन्होंने कलगीधर पातशाह से एक प्रश्न किया - क्या गृहस्थ आश्रम में भी मुक्ति मिल सकती है ? सच्चे पातशाह ने फ़रमाया कि - आप सभी ने अब गृहस्थ आश्रम  त्याग कर वान -प्रस्थ आश्रम अपना लिया है।  आप किन-किन वस्तुओं  को  त्याग   के  आये हो ? फिर स्वयं ही समझाते हुए फ़रमाया- क्या आप अपने तन के ...

दातें लुटाने वाला दातार

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  बाबा नन्द सिंह साहिब ने एक पावन साखी सुनाई- गुरु नानक पातशाह नगर से निकले तो सभी नगरवासी साथ-साथ चलने लगे।  सभी को अपने साथ आता देख कर उन्होंने एक लीला रची।   थोड़ी दूर जा कर चारों ओर देखा और फ़रमाया- यहां तो बहुत बहुमूल्य वस्तुयें पड़ीं हैं।   झोली भरो और  इन्हें ले जाओ।    सभी ने लपक कर उन्हें उठाया और झोलियाँ भर कर वापिस मुड़ गए।  साहिब आगे बढ़ गए।  कुछ देर बाद पीछे मुड़ कर देखा तो अभी भी कुछ नगरवासी उनके पीछे-पीछे चले आ रहे थे।  कुछ दूरी तय करने के बाद साहिब ने फिर फ़रमाया - यहां तो पहले से भी  अधिक  बहुमूल्य वस्तुयें हैं।  यह बहुमूल्य वस्तुयें तो   निरंकार की कृपा  हैं ।   अपनी झोली भरो और ले जाओ। कई नगरवासियों ने उन वस्तुओं से अपनी झोली भरी  और लौट गए।   साहिब ने कुछ दूर जा कर देखा कि अभी भी कुछ नगरवासी उनका अनुसरण कर रहे थे।  गुरु नानक पातशाह ने उन्हें पहले से भी अधिक बहुमूल्य वस्तुयें... चांदी, सोना वगैरा दिखाया।    फ़रमाया- आप तो उन सब से  अधिक...

मष्तक के उलटे लेख

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  बाबा नन्द सिंह जी महाराज ने एक बार एक पावन साखी सुनाई- दशमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का दरबार सजा हुआ है।   कीर्तन-प्रवाह हो रहा है।  सारी संगत पावन शब्द - "लेख न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि"  के इलाही रस का आनंद उठा रही है।  काज़ी सलारद्दीन गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के दर्शन हेतु आये तो सिक्खों ने बहुत सत्कार सहित एक और बैठा लिया।  कीर्तन-शब्द सुनते हुए एक शंका उन के मन में  पैदा हुआ कि- लेख न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि।। यदि लेख ही नहीं मिटेगा तो गुरु दरबार में आने का क्या लाभ? कीर्तन के उपरांत सच्चे पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब काज़ी जी से पूछते हैं - काज़ी साहिब, यह आपने अपनी उंगली में क्या पहना हुआ है? काज़ी सलारद्दीन : गरीब निवाज़, यह मोहर-छाप है।  जब भी मैं बतौर काज़ी किसी को कोई फ़तवा देता हूँ तो यह मोहर लगा देता हूँ।   सच्चे पातशाह :   काज़ी साहिब, इस मोहर-छाप के अक्षर किस तरह से बने हुए हैं।   काज़ी सलारद्दीन : सच्चे पातशाह, इस मोहर-छाप के अक्षर उलटे हैं, पर जब इस को कागज़ पर लगाते ह...

ਮਸਤਕ ਦੇ ਪੁੱਠੇ ਲੇਖ ਸਿੱਧੇ

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ਬਾਬਾ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਨੇ ਇਕ ਵਾਰ ਇਕ ਪਾਵਨ ਸਾਖੀ ਸੁਣਾਈ-   ਦਸਮੇਸ਼ ਪਿਤਾ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਦਾ ਦਰਬਾਰ ਸਜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ | ਕੀਰਤਨ ਦੀ ਚੌਂਕੀ ਭਰੀ ਜਾ ਰਹੀ  ਹੈ | ਪਾਵਨ ਸ਼ਬਦ - ਲੇਖ ਨ ਮਿਟਈ ਹੇ ਸਖੀ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਕਰਤਾਰਿ,  ਦੀ ਇਲਾਹੀ ਧੁਨੀ ਵਿਚ ਸਾਰੀ ਸੰਗਤ ਆਨੰਦ ਮਾਣ  ਰਹੀ ਹੈ | ਕਾਜ਼ੀ ਸਲਾਰਦੀਨ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਨੂੰ ਆਏ ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ ਨਾਲ ਇਕ ਪਾਸੇ  ਬਿਠਾ ਲਿਆ|   ਕੀਰਤਨ ਸ਼ਬਦ ਸੁਣਦੇ ਸੁਣਦੇ ਇਕ ਸ਼ੰਕਾਂ ਮਨ ਵਿਚ ਉਪਜਿਆ ਕਿ- ਲੇਖ ਨਾ ਮਿਟਈ ਹੇ ਸਖੀ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਕਰਤਾਰਿ ||  ਜੇ ਲੇਖ ਹੀ ਨਹੀਂ ਮਿਟੇਗਾ ਤਾਂ ਗੁਰੂ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚ ਆਉਣ ਦਾ ਕੀ ਲਾਭ ਹੋਇਆ | ਕੀਤਰਨ ਚੌਂਕੀ ਦੇ ਉਪਰੰਤ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ ਪੁਛਦੇ ਹਨ-                         ਕਾਜ਼ੀ ਸਾਹਿਬ, ਉਂਗਲੀ ਵਿਚ ਕੀ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ? ਕਾਜ਼ੀ ਸਲਾਰਦੀਨ :      ਗਰੀਬ ਨਿਵਾਜ਼, ਇਹ ਮੋਹਰ ਛਾਪ ਹੈ | ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਕਾਜ਼ੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਕੋਈ ਫਤਵਾ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ ਤਾਂ ਇਹ ਮੋਹਰ ਲਗਾ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ |  ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ :          ਇਸ ਮੋਹਰ ਛਾਪ ਦੇ ਅੱਖਰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ? ਕਾਜ਼ੀ ਸਲਾਰਦ...