गुरु नानक को कहां खोजें?
कहने लगे - एक बार बाबा श्रीचंद जी अमृतसर तशरीफ़ लाये।
श्री गुरु रामदास जी सच्चे पातशाह ने उनकी बहुत आवभगत की। उनके चरणों में बहुत ही सत्कार सहित बैठे, बहुत आदर किया। अपने दाढ़ी से उनके चरण पौंछे, उन्हें साफ़ किया।
उस समय जब बाबा श्रीचंद जी ने गुरु रामदास जी की यह विनम्रता और गरीबी देखी तो गुरु रामदास जी को एक प्रसंग सुनाया।
कहने लगे - एक बार हमने अपने निरंकार पिता गुरु नानक देव जी से उनके अंतिम समय यह पूछा कि-
सच्चे पातशाह यदि आप को खोजना हो तो कहां खोजें ?
तो आगे से निरंकार पिता ने उत्तर दिया-
श्री चंद यदि हमें ढूंढ़ना हो तो इस ब्रह्माण्ड के पैरों की खाक में हमें ढूंढ लेना।
साध संगत जी, फिर बाबा श्री चंद जी ने गुरु रामदास जी को निहारते हुए फ़रमाया-
आप में हमारे निरंकार पिता की वही विनम्रता और गरीबी है।
फिर हाथ जोड़ कर तीन बार कहा -
धन्य गुरु गुरु रामदास!!!
धन्य गुरु गुरु रामदास!!!
धन्य गुरु गुरु रामदास!!!
गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।
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