दातें लुटाने वाला दातार

 बाबा नन्द सिंह साहिब ने एक पावन साखी सुनाई-



गुरु नानक पातशाह नगर से निकले तो सभी नगरवासी साथ-साथ चलने लगे।  सभी को अपने साथ आता देख कर उन्होंने एक लीला रची।  

थोड़ी दूर जा कर चारों ओर देखा और फ़रमाया-

यहां तो बहुत बहुमूल्य वस्तुयें पड़ीं हैं।  

झोली भरो और इन्हें ले जाओ।  

सभी ने लपक कर उन्हें उठाया और झोलियाँ भर कर वापिस मुड़ गए। 

साहिब आगे बढ़ गए।  कुछ देर बाद पीछे मुड़ कर देखा तो अभी भी कुछ नगरवासी उनके पीछे-पीछे चले आ रहे थे। 

कुछ दूरी तय करने के बाद साहिब ने फिर फ़रमाया -

यहां तो पहले से भी अधिक बहुमूल्य वस्तुयें हैं।  यह बहुमूल्य वस्तुयें तो निरंकार की कृपा  हैं ।

 अपनी झोली भरो और ले जाओ।

कई नगरवासियों ने उन वस्तुओं से अपनी झोली भरी  और लौट गए।  

साहिब ने कुछ दूर जा कर देखा कि अभी भी कुछ नगरवासी उनका अनुसरण कर रहे थे। 

गुरु नानक पातशाह ने उन्हें पहले से भी अधिक बहुमूल्य वस्तुयें... चांदी, सोना वगैरा दिखाया।   

फ़रमाया-

आप तो उन सब से अधिक लाभ में रह गए, अपनी झोली भरो और ले जाओ।  

सब ने अपनी-अपनी झोली भरी और घर को लौट गये।  

सच्चे पातशाह अपने रास्ते आगे बढ़ गए।  इस बार पलट कर देखा तो केवल एक नगरवासी "भाई लहिणा जी" पीछे चले आ रहे थे। 

साहिब ने पूछा - भाई लहिणा जी, हमने इतनी बहुमूल्य वस्तुयें लुटायीं, आप  झोली भर कर क्यों नहीं लौटे ?  

लहिणा जी ने उत्तर देते हुए फ़रमाया-

सच्चे पातशाह मैं नुक्सान में नहीं हूँ।  

गुरु नानक पातशाह ने इसका मतलब पूछा।  

 (लहिणा जी ने) फ़रमाया- 

सच्चे-पातशाह, बेश-कीमती दातें (पदार्थ) लुटाने वाला दातार जो मेरे पास है।  

गुरु नानक पातशाह ने उस प्रेम को फिर अपने अलिंगन में ले लिया।  

सदा रहै निहकामु जे गुरमति पायीअै।।

गुरु नानक देव जी




गुरु नानक दाता बख्श  लै, 

बाबा नानक बख्श लै। 

  

  

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