मुक्ति
एक बार मेरे पिता जी, भाई साहिब संत सुजान सिंह जी (प्रसिद्ध कीर्तनिए) तथा अन्य श्रद्धालु बाबा जी की कुटिया को प्रणाम करने जा रहे थे। पिता जी ने नित्य की तरह कुटिया के बाहर द्वार पर कालू (कुत्ते) को बैठे हुए देखा। पिता जी ने बड़े सम्मानपूर्वक कालू को गोदी में उठा लिया तथा उसके पैरों को अपने मस्तक से लगा लिया। कालू के पाँवों की धूल उनके मस्तक पर लग गई।
संत सुजान सिंह जी ने मजाक में कहा- कप्तान साहिब! यह क्या कर रहे हो?
मेरे पिता जी ने अपने नम्र स्वभाव के अनुसार उत्तर दिया:
भाई साहिब, मैं प्रति दिन अपने स्वामी बाबा नंद सिंह जी महाराज के समक्ष दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूँ कि सच्चे पातशाह मुझे अपना कुत्ता बना लो। भाई साहिब यह कालू कितना भाग्यशाली है जो पहले ही इस महान् पदवी का आनंद प्राप्त कर रहा है।
अगले दिन शाम के समय संत सुजान सिंह जी मेरे पिता जी के पास आए। उनके नेत्रों से अश्रुधारा बह रही थी। वह अपने व्यंग्य पर पछता रहे थे, क्योंकि उनको कुछ विचित्र अनुभव हुआ था।
उन्होंने रात को सपने में देखा कि यमराज के दूत एक मृत व्यक्ति को नरक में ले जा रहे थे। अचानक आकाश से कोई वस्तु उस अभागे व्यक्ति की मृत देह पर पड़ गई। यमराज के दूत भयभीत हो गए तथा वहाँ से भाग गए। उनके स्थान पर देवगण उस व्यक्ति को आदर सहित स्वर्ग में ले जाने के लिए पालकी लेकर आ गए।
उन्होंने संत जी को बताया कि एक चील बाबा नंद सिंह जी महाराज के कालू कुत्ते के पाँवों से रोटी का टुकड़ा छीन कर के ले गई थी। आकाश में उड़ते समय यह टुकड़ा नरक को ले जाए जा रहे उस दण्डित व्यक्ति की मृत देह पर गिर पड़ा। इस टुकड़े पर कालू कुत्ते के पाँवों की धूल लगी हुई थी। दण्डित आत्मा एकदम मुक्त हो गई थी। उस को देवगण प्रणाम करने तथा उसे स्वर्ग को ले जाने के लिए आ गए थे।
आँखो में आँसू भरे हुए संत सुजान सिंह जी ने कहा-
वह सुबह से ही कालू को खोज रहे थे, पर वह मिला नहीं। उन्होंने अपने पहले दिन के कथन के लिए सच्चे मन से माफ़ी माँगी।
पिता जी ने नम्रता से फिर यही कहा-
भाई साहिब मुक्ति ताँ बाबा नंद सिंह जी महाराज दे कुत्ते भी बक्श सकदे हन्।
भाई साहब मुक्ति तो बाबा नंद सिंह जी महाराज के कुत्ते भी प्रदान कर सकते हैं।
गुरु नानक दाता बख्श लै,
बाबा नानक बख्श लै।
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