बाबा नन्द सिंह जी मेरा तां सब कुछ तुहींओं तूँ

 



इक तिल नही भंनै घाले


बाबा नंद सिंह जी महाराज देहरादून के जंगलों में विराजमान थे। पिताजी ने 6-7 दिनों के लिए अवकाश लिया और पूर्णिमा के दिन से पहले ही वहाँ पहुँच गए। पहले उन का विचार सभी बच्चों को साथ ले जाने का था। किसी कारणवश उनका यह विचार बदल गया। हमारे दो-तीन दिन बाबाजी की याद और विरह में बीत गए। गर्मी का मौसम था। हमारे सोने के लिए कोठी के पिछले सहन (खुले आंगन) में चारपाइयाँ बिछाईं गयीं थी।

हम सभी परिजन बाबा जी की चर्चा करते हुए उन्हें याद कर रहे थे। कुछ देर बाद बहन-भाई तो सो गए, पर मेरी छोटी बहन बीबी भोलां रानी और मैं बाबा जी को याद करते हुए सारी रात उनके वियोग में रोते रहे। हमें पता ही नहीं चला कि कब सवेरा हो गया।

उधर बाबा नंद सिंह जी महाराज ने उसी सवेरे पिताजी को अपने पास बुलाया और पूछा कि-
डिप्टी, बच्चों को साथ क्यों नहीं लाए? 

पिताजी ने हाथ जोड़ कर अपनी इस भूल के लिए क्षमा मांगी और विनती की- 
गरीबनिवाज़ ! आगे से यह गल़ती नहीं होगी। 
 
बाबा जी ने दूसरी बार फिर वही वचन दोहराया- इस बार क्यों नहीं लाए ? 

पिताजी ने फिर भूल के लिए विनम्रतापूर्वक विनती करते हुए क्षमा मांगी। 
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने फिर दोहराया- 
डिप्टी, यह तुमने अच्छा नहीं किया। तुम उनको ले कर नहीं आए। उनका प्रेमभरा रूंदनं सारी रात मुझे सुनाई देता रहा। डिप्टी, उनकी करुण पुकारों ने हमें सारी रात भजन नहीं करने दिया। 

 

यह सुन कर पिताजी बहुत रोये। देहरादून से वापिसी पर जब वे अपने घर मोगा शहर पहुँचे तो उन्होंने सबसे पहले हमें यही बात बताई।

बाबा नंद सिंह जी महाराज जब देहरादून से वापिस पधारे तो पिताजी हमारे सारे परिवार को बाबा जी के दर्शनों के लिए ‘ठाठ’ (कुटीर) पर ले कर गए। दीवान (संगत-समागम) में पिताजी के साथ मैं सामने ही बैठा था। यह सोच कर मैं अपने-आप में व्यथित हो रहा था कि बाबा नंद सिंह जी महाराज अपने चरणों को हाथ नहीं लगाने देते, पर मैंने उनके चरणों में माथा टेका और उनके श्रीचरणों को चूमा भी। हम बहन-भाइयों को यह याद कर के भी बहुत दुःख हुआ कि हम उनके भजन में विध्न का कारण बने। 

बाबाजी ने अत्यन्त प्यार और कृपा से देखा और ये अमृत वचन कहे- 
बेबे नानकी अपने वीर (भाई) गुरु नानक को कोई चिट्ठी लिखती थी या तार भेजती थी ? फिर वह क्या चीज़ थी जो गुरु नानक पातशाह को तुरंत मिल जाती थी? 
चिट्ठी या तार से भी तेज गति मन की है। अपने सतिगुरु, अपनी इष्ट के प्रति उपजा प्रेम तुरंत एक संदेश के रूप में उनके चरण-कमलों में पहुंच जाता है। ऐसे दिव्य प्रेम की राह में समय और सीमा जैसे बंधन आडे नहीं आते।

दयास्वरूप बाबा नंद सिंह जी महाराज ने फिर मेरी ओर देख कर फरमाया- 
सच्चा प्रेम, नियम और रुकावटों को तोड़कर तीव्र गति से आगे बढ़ जाता है।

मेरे दोनों विचारों का मुझे उत्तर मिल गया था।
सतिगुरु मेरा सदा दइआला
मोहि दीन कउ राखि लीआ।।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 383

गुरु नानक दाता बख्श  लै

बाबा नानक बख्श लै।

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