गुरु नानक दाता बख़्श लै मिशन की शुरुआत






महा पुरखा का बोलणा होवै कितै परथाइ।।
ओइ अम्रित भरे भरपूर हहि ओना तिलु न तमाइ।।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 755
साध् संगत जी, 
एक दिन पवित्र अमृत-बेला में पूज्य पिताजी ने इस दास को अपने निकट बुलाया। उस समय पिताजी ने इस दास के प्रति जो पावन वचन कहे, उनको आपसे साँझा करना आवश्यक है।
उन्होंने फ़रमाया-
देखो पुत्रा, बाबा नंद सिंह साहिब के चरण-कमलों में बैठकर तुमने उनकी पवित्र गोद (वात्सल्य) का आनन्दमय सुख प्राप्त किया है, उनके पवित्र चरण-कमलों का स्पर्श प्राप्त किया है तथा उनके पावन मुखारविन्द से उच्चरित अमृत वचनों का पान किया है। 

 

पुत्र, तुमने जी भरकर ‘बाबेआं’ (बाबा नंद सिंह साहिब) के पावन दर्शन किये और उनकी आश्चर्यमयी लीलाओं को देखने का सौभाग्य प्राप्त किया। बाबा नंद सिंह साहिब जिस विलक्षण परिवेश में विचरते थे, उन विशिष्ट अनुभवों में आकण्ठमग्न होकर तुमने उनका आनन्द उठाया है। 
 
पिताजी पुनः फरमाने लगे-
 पुत्र ‘बाबेआं’ (बाबा नंद सिंह साहिब) के चरण-कमलों के प्रति तुम्हारा शिखरस्थ सच्चा प्यार और लगाव तुम्हारी तीनों बहनों के अथाह प्रेम सरीखा ही है।
फिर उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के इस पावन ‘शबद’ के विषय में विशेष उल्लेख करते हुए फ़रमाया-
महा पुरखा का बोलणा होवै कितै परथाइ।।
ओइ अम्रित भरे भरपूर हहि ओना तिलु न तमाइ।।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 755
उन पावन वचनों में जितना अमृत रस बाबा नंद सिंह साहिब की पवित्र रसना से निःसृत हुआ है व उनकी अमृत-दृष्टि से वर्षित हुआ है, उस अमृतसिक्त प्रकाश के आश्चर्यमय कौतुक तुमने देखे हैं। 
उस अमृत के विषय में क्या किसी को पता था कि बाबा नंद सिंह साहिब ने किस संदर्भ में (परथाइ) ये वचन उच्चरित किये थे ! वह अमृत, जो स्वयं ही निरंकार का अमृतरूप है, निरंकार का प्रकाशरूप है, वह निरंकार के सभी बच्चों का साँझा है। 
बाबा नंद सिंह साहिब पूर्ण रूप से बेमुहताज, बेपरवाह और तिल भर तमा (स्वार्थ) न रखने वाले महापुरुष थे। वे इस सीमा तक निरंकार-पारायण थे कि उन्होंने लेशमात्र भी मान (श्रेय) अपने ऊपर नहीं लिया। जो अमृतवर्षा उस समय बाबा नंद सिंह साहिब कर रहे थे वह किस संदर्भ (परथाइ) में हुई है। 
पुत्र, निरंकार के सभी बच्चों और समूचे संसार तक इस अमृत को पहुँचाना हमारे लिए परम सेवा का कार्य है, क्योंकि यह अमृत-प्रकाश निरंकार के सभी बच्चों की साँझी विरासत है।
जिस भावावस्था में पिताजी ने ये वचन उच्चरित किये, उस अवस्था में उनके प्रेमाश्रुओं की अमृतधरा बाबा नंद सिंह साहिब के पवित्रा चरण-कमलों पर अर्पित हो रही थी। प्रेमभरे अश्रुओं की यह न्योछावर (सदका) ही वैराग्यमय ‘गुरु नानक दाता बख़्श लै मिशन’ की शुभ शुरुआत थी तथा पूज्य पिताजी द्वारा बाबा नंद सिंह साहिब के पावन चरण-कमलों में अर्पित एक अत्यन्त विनम्र, पे्रमाकुल एवं शाश्वत (सदीवी) दण्डवत् वन्दना थी।

दासन-दास,

प्रताप सिंह
203, सेक्टर 33-ए
चण्डीगढ़

गुरु नानक दाता बख्श लै ,
बाबा नानक बख्श लै।  

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