दुखु दारू सुखु रोगु भइया - (दुःख दवा, सुख रोग हुआ)

 

                   

दुःख अदृष्ट वरदान है क्योंकि दुःख के समय मनुष्य का मन तत्परता से परमात्मा में लग जाता है और वह परमात्मा की कृपा की कामना करता है। 

विपत्ति हरेक पर आती है। विपत्ति में ही परमात्मा को याद किया जाता हे। 

दुःख हमें सहनशीलता, तपस्या और नम्रता सिखाता है। यह हमें परमात्मा के इच्छा-विधान को धैर्य और संतोषपूर्वक मानना सिखाता है।

दुःख में मनुष्य कई प्रकार के दैवी गुणों का विकास कर सकता है। परमात्मा को दुःख, कष्ट और विपत्ति के गंभीर क्षणों में हम सबसे अधिक याद करते हैं। 

जलती हुई चिताओं के पास हम परमात्मा और मौत की सच्चाई को अति निकटता और सही तरीके से जानने का यत्न करते हैं। दुःख मनुष्य से किये हुए पापों और अपराधों का भुगतान करा देते हैं।

दुःख में अहंकार पिघल जाता है।
दुःख इंसान को परमात्मा के नज़दीक ले जाता है।।

कोई भी मनुष्य अपनी इच्छा से इस दुनिया में नहीं आया। जितनी जल्दी मनुष्य इस रहस्य को समझ ले कि सारे ब्रह्माण्ड को चलाने और नियंत्रित करने वाला वह सर्व शक्तिमान है, तो ऐसा समझ लेना मनुष्य के लिए उतना ही अच्छा है। 



परमात्मा की रज़ा (इच्छा) में दुःखी व्यक्ति को माया का असली रूप नजर आ जाता है। इस प्रकार उसे नाशवान् शरीर और जीवन की सच्ची प्रकृति दृष्टिगोचर हो जाती है। उसका मन परमात्मा की ओर मुड़ जाता है। इससे उसके मन में दुःखी जीवों के लिए दया की भावना पैदा होती है।

गुरु नानक दाता बख्श लै, 
बाबा नानक बख्श लै।।

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