मैं कुत्ता बाबे नंद सिंह दा, डिप्टी मेरा नाउँ।

 


विषय-विकारों का विष

एक बार संगत को सम्बोधित करते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज ने यह वचन फरमाया-
साँप से लड़कर नेवला साँप को मार देता है। साँप का विष नेवले पर भी चढ़ता है पर उसे जंगल की जड़ी-बूटी याद है। वह जाकर उसे सूँघ लेता है और साँप का विष उतर जाता है। यदि वह बूटी कहीं निकट न हो तो नेवला अपनी मनोलय (मनोलीनता-वृत्ति) के द्वारा उस बूटी का सेवन करता है और विष उतर जाता है। 
हम दुनिया में काम काज करते हैं। विषय-विकारों की जहर (विष) हर पल चढ़ा रहता है। इस जहर को उतारने का भी ढ़ंग उस समय अपने इष्टदेव के चरणों में बैठकर नाम का स्मरण और इष्टदेव के दर्शन करने से विषय-विकारों का विष उतर जाता है। यदि इष्ट का स्वरूप-दर्शन निकट संभव न हो तो वृत्ति (मनोलयता) के द्वारा उनके चरणों का ध्यान करने व उनका स्मरण करने से भी यह विष उतर जाता है और वृत्ति भी इस अभ्यास से पुष्ट होती जाती है।

लै डिप्टी, हुण खीसा गुरु नानक दा ते हथ तेरा, कदी तोट नहीं आवेगी।

बाबा जी के दर्शन करने के लिए एक बार देर रात को अमृतसर से एक बड़ी संगत ‘ठाठ’ (कुटिया) पर पहुँची। देर होने और भोजन-प्रसाद न पाने से संगत भूखी-प्यासी थी। बाबा नरिन्दर सिंह जी ने बाबा नंद सिंह जी महाराज के सम्मुख विनती करके लंगर की सेवा ले ली। पिताजी ने तत्परता से मोगा शहर से अपनी मोटरकार मँगायी और बहुत जल्दी में ही सारे पदार्थ, हलवा-पूरी, आलू-छोले और कई पदार्थ तथा फल-मेवा तैयार कराकर वापस पहुँचे।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने अपनी पवित्र छड़ी से सारी चीजों का स्पर्श किया और सारा प्रबंध देखकर बहुत प्रसन्न हुए। बाबा नरिन्दर सिंह जी पर उन्होंने कृपापूर्ण दृष्टि डाली। 
दो बोल कहे, लगा कि जैसे कृपा की वर्षा कर दी हो। वह आकाशीय वर्षा के दो अनमोल मोती इस तरह है-
डिप्टी आज तुमने असली डाकू पकड़ लिया है। ले पुत्र! अब खीसा (जेब) गुरु नानक का और हाथ तेरा, कभी कमी नहीं आयेगी।

जैसे-जैसे बाबा नंद सिंह जी के मुखारविन्द से अमृत-वर्षा होती रही, पिताजी (बाबा नरिन्दर सिंह जी) उस अमृत-वर्षा में स्नान करते हुए अन्तरात्मा में अपने मालिक, दया के सागर बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणों में यह धुन गाते रहे-
मैं कुत्ता बाबे नंद सिंह दा, डिप्टी मेरा नाउँ।

असीम नम्रता, ग़रीबी और प्रेम के केसर में स्नान
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने जब चारों ओर दृष्टि उठाकर देखा तो बड़े-बड़े महात्मा भजन कर रहे थे। फिर उन्होंने नीचे दृष्टि डाली तो देखा कि सबसे नीचे उनके कालू कुत्ते के चरणों की धूल से सना,लिपटा हुआ ‘डिप्टी’ (बाबा नरिन्दर सिंह) नम्रता और ग़रीबी में रस ले रहा है। अपने कुत्ते की धूलि में लिपटे-सने डिप्टी को बाबा नंद सिंह जी महाराज ने हाथ पकड़कर उठाया। उन्हें अपने पवित्र सीने से लगाया और अपनी बख़्शिश में रंगकर नम्रता, गरीबी और प्रेम का ‘तिलक’ मस्तक पर लगा दिया। उस समय बाबा नरिन्दर सिंह जी के रोम-रोम से यही ध्वनि निकल रही थी-
मैं कुत्ता बाबे नंद सिंह दा, डिप्टी मेरा नाउँ ।

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 3)
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