प्रेम के पैगम्बर हजरत ईसा

 



साध संगत जी!

हजरत ईसा चले जा रहे थे। एक जगह लोग का जमघट लगा था।  एक महिला सबके बीच खड़ी थी। आस पास खड़े सभी लोगों के हाथ में पत्थर थे।

वहाँ पादरी भी खड़े थे और उन्होंने आदेश दिया- इस औरत को पत्थर मारो, इसने पाप किया है।

वह पादरी हजरत ईसा जी से चिढ़ते  थे। उन्होंने अपने हाथ में एक सुनहरा अवसर देखा और उन्हें भी आमंत्रित किया।

जब पादरियों ने उन्हें  बुलाया और कहा- 

उस महिला ने यह पाप किया है।  चूँकि आप भी भगवान को मानने वाले हो,  इसको मौत की सजा मिली है इसलिएआप भी इसको मारने के लिए पत्थर उठा लें।

हजरत ईसा ने उस महिला की ओर देखा। वह बहुत डरी हुई थी। उस बेचारी ने भाँप लिया था कि मेरा अन्त आ गया है।  वह मृत्यु से डरी हुई थी। उसने प्रभु  यीशु की ओर देखा कि यही वह पैगम्बर है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह आया है।

वह दया भाव से प्रभु यीशु को देख रही है कि-  हे गरीब निवाज़, मुझ पर दया करो।

अब हजरत ईसा जी,  प्रार्थना में उस महिला के गुरु नानक जी हैं हज़रत ईसा मसीह के रूप में हैं।

वह विनती कर रही है कि- हे गरीब निवाज! मुझे बख्श दो

मेरे सतिगुर जी मैं तां बहुत गरीब हाँ। 

बाबा जी मैं तां बहुत गरीब हाँ। 

ना देखो लेख मत्थे दे मेरे करमां वल्ल ना जायेओ। 

रहमत दी भर काहनी (कलम) बाबा जी, लीक इहनां ते वाहेओ। 

बख्शो बख्शो मेरे गुनाह, मैं तां बहुत गरीब हाँ। 

मैनू रख लओ बाबा जी, मैं तां बहुत गरीब हाँ।

हजरत ईसा की दृष्टि में बख्शीश थी, उन्होंने उसकी ओर देखा।

जब सभी ने कहा कि - पत्थर उठाओ और उस महिला को मारो

उन्होंने आस पास चारों ओर देखा और फ़रमाया- सबसे पहला पत्थर उस को मारना चाहिए जिसने कभी कोई पाप न किया हो। 

सभी के सिर झुक गए।  सबने अपने भीतर झाँका तो पाया कि उनकीअपनी जिंदगी क्या थी। सबके हाथ से पत्थर गिर गये। सब कुढ़ते हुए, अपने हृदय में सोचते हुए वहां से चले गये कि आज यह हमारे साथ क्या हुआ। 

उस महिला ने सिर झुकाकर उनका धन्यवाद करते हुए कहा- हे मेरे गुरु नानक! तुमने मुझे बचा लिया।  

हजरत ईसा ने फ़रमाया - जाओ बेटी, तुम्हारा कल्याण हुआ।  लेकिन अब से कोई पाप मत करना।

साध संगत जी, जरा सोच के देखो  कि-

वह जब भी आता है तो उद्धार करने के लिए ही आता है।

एक बार बाबा नंद सिंह साहिब ने फ़रमाया था कि-

वह एक स्वरूप लेकर आता है- 

  • जब उसने किसी पापी का उद्धार करना हो, 
  • जब किसी के पापों को देखकर उसका कल्याण करना होता है, 
  • जब उसने किसी के पापों को क्षमा करना होता है, 
  • जब उसने पापों को अपने ऊपर लेकर उनका भुगतान करना होता है, 

तो वे स्वयंअवतरित होता है।

तुझ बिनु अवरु न कोई मेरे पिआरे तुझ बिनु अवरु न कोइ हरे ॥

सरबी रंगी रूपी तूंहै तिसु बखसे जिसु नदरि करे ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग -355

पिछले गुनह बखसाइ जीउ अब तू मारगि पाइ ॥

हरि की चरणी लागि रहा विचहु आपु गवाइ ॥

 

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग - 994

 मेरे राम इह नीच करम हरि मेरे ॥

गुणवंता हरि हरि दइआलु करि किरपा बखसि अवगण सभि मेरे ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग - 167

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

Guru Nanak Daata Baksh Lai Mission

By:- Brig. Partap Singh Ji Jaspal

Comments