पवित्रता और मलिनता का सुमेल नहीं हो सकता।
एक पवित्र हृदय ज्योति-स्वरूप है ईश्वरीय प्रेम में लीन एक पवित्र मन कामिनी और कंचन से निर्लेप होता है। एक पवित्र हृदय दिव्य प्रकाश व परमानन्द से पूर्ण होता है। एक सच्चा संत कभी भी इस दिव्य प्रकाश व परमानन्द को, किसी सांसारिक भोग में पड़कर मलिन नहीं करेगा क्योंकि जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही ईश्वरीय प्रेम और सांसारिक प्रेम एक साथ नहीं रह सकते और ना ही ज्ञान का अज्ञानता से कोई मेल हो सकता है। यही कारण है कि बाबा नंद सिंह जी महाराज ने कभी भी सांसारिक विषयों पर बात नहीं की थी और न ही किसी को अपनी उपस्थिति में अथवा अपने स्थानों पर ऐसा करने की आज्ञा दी थी। एक दिन बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक महापुरुष की अवस्था का वर्णन करते हुए फ़रमाया कि- कुएँ में डूबी हुई बालटी के अंदर भी और बाहर भी पानी है। पानी के सिवा और कुछ भी नहीं है। पानी निरंकार स्वरूप है और बालटी महापुरुष। बिलखती, तड़पती और बिछोह पीड़ा भोगती आत्माओं द्वारा अपनी मुक्ति और मार्गदर्शन व बन्धन से छुटकारे हेतु की गयी प्रेम भरी पुकारें एवं हाथ जोड़ कर की...