पवित्रता और मलिनता का सुमेल नहीं हो सकता।

   


  • एक पवित्र हृदय ज्योति-स्वरूप है 
  • ईश्वरीय प्रेम में लीन एक पवित्र मन कामिनी और कंचन से निर्लेप होता है। 
  • एक पवित्र हृदय दिव्य प्रकाश व परमानन्द से पूर्ण होता है। 
  • एक सच्चा संत कभी भी इस दिव्य प्रकाश व परमानन्द को, किसी सांसारिक भोग में पड़कर मलिन नहीं करेगा 
क्योंकि जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही ईश्वरीय प्रेम और सांसारिक प्रेम एक साथ नहीं रह सकते और ना ही ज्ञान का अज्ञानता से कोई मेल हो सकता है। 
यही कारण है कि बाबा नंद सिंह जी महाराज ने कभी भी सांसारिक विषयों पर बात नहीं की थी और न ही किसी को अपनी उपस्थिति में अथवा अपने स्थानों पर ऐसा करने की आज्ञा दी थी।
एक दिन बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक महापुरुष की अवस्था का वर्णन करते हुए फ़रमाया कि-
कुएँ में डूबी हुई बालटी के अंदर भी और बाहर भी पानी है। पानी के सिवा और कुछ भी नहीं है। पानी निरंकार स्वरूप है और बालटी महापुरुष। बिलखती, तड़पती और बिछोह पीड़ा भोगती आत्माओं द्वारा अपनी मुक्ति और मार्गदर्शन व बन्धन से छुटकारे हेतु की गयी प्रेम भरी पुकारें एवं हाथ जोड़ कर की गयी प्रार्थनापूर्ण याचनाएँ, निरंकार परमात्मा से महापुरुष को उसी प्रकार खींच कर मातृ-लोक में ले आती हैं जिस प्रकार कुएँ के जल में डूबी बालटी को रस्सी बाहर खींच ले आती है।

महापुरुष संसार में आकर भी संसार से निर्लिप्त रहते हैं। 
निर्लेपता को समझाते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज ने फरमाया- 
मछली पानी में रहती है। जब कभी वह पानी से अपना मुँह बाहर निकालती है, तो उस का दम घुटना शुरु हो जाता है और वह तत्काल पानी में डुबकी लगा देती है। पानी ही उस का जीवन है, प्राणों का आधार है। पानी ही उस का शुद्ध प्रेम है। पानी ही उस का एक मात्रा सहारा है। इसी प्रकार महापुरुष हर समय निरंकार के चरणां में लीन रहता है। वह उसकी भक्ति में डूबा रहता है। भक्ति ही उसके प्राण हैं, उसके जीवन का आधार है। परमात्मा का नाम अमर रस है। महापुरुष अपने श्वास-श्वास से नाम की खुमारी में समाया रहता है। जब कभी वह किसी सांसारिक कार्य या आवश्यकतावश उस लीनता, नाम की खुमारी से बाहर आता है तो उस का दम भी उस मछली की तरह ही घुटने लगता है जो पानी से मुँह बाहर करते ही घुटन महसूस करती है। जैसे मछली एकदम पानी में लौट जाती है, उसी प्रकार महापुरुष भी नाम की खुमारी, निरंकार के चरणों में लौट आते हैं। बाबा नंद सिंह जी महाराज सिर्फ़ संसार का कल्याण करने के लिए आए थे और संसार का कायाकल्प करके अन्तर्धान हो गए। वे संसार से पूरी तरह अनासक्त रहे और संसारिकता को स्वयं को स्पर्श भी नहीं करने दिया।
धन्न धन्न बाबा नंद सिंह साहिब जी।
बाबा नन्द सिंह जैसा ऋषि न कोई हुआ है और न ही कोई होगा। 
केवल बाबा जी की पवित्र उपस्थिति में उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के नाम का ऐसा अद्भुत व चमत्कारिक प्रभाव होता था कि कोई भी सांसारिक विचार प्रवेश नहीं कर सकता था। अपने जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने इन नियमों का पालन बहुत दृढता से किया।

संसार और स्वार्थ से निर्लेप बाबा नंद सिंह जी महाराज आज भी आध्यात्मिकता के शिखर पर सुशोभित है।

गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥

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