पोथी परमेसरु का थानु।।

बाबा नंद सिंह साहिब ने पावन वचन किया। 

उन्होंने फरमाया-

गुरु नानक पातशाह के चार स्वरूप हैं। 

1) पहला निरंकार, 

2) दूसरा सगुण स्वरूप, 

3) तीसरा श्री गुरु ग्रंथ साहिब की अमृतबाणी और 

4) चौथा स्वरूप है उनका नम्रता और गरीबी का। 

इसे समझाते हुए पिताजी कहने लगे-

 जपुजी साहिब, गुरु नानक पातशाह के चारों स्वरूपों का प्रकाश है। उसी में गुरु नानक पातशाह के चारों स्वरूपों के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। ये वह दरगाही सोपान हैं, जो सीधे ही दरगाह में ले जाते हैं। 

इनकी न काई शुरुआत है न कोई अन्त है। शुरु से अंत तक गुरु नानक ही गुरु नानक हैं। गुरु नानक ही इन सीढ़ियों तक ले जाने वाले हैं और मंजिल भी गुरु नानक ही हैं। 

निरंकार के चारों स्वरूपों का प्रत्यक्ष दर्शन है ‘जपुजी साहिब’। ‘जपुजी साहिब’ और गुरु नानक निरंकार को ही सम्मुख रखकर सभी गुरु साहिबानों ने अमृतबाणी का उच्चारण किया है।

मूल मंत्र का विस्तार है जपुजी साहिब और 
जपुजी साहिब का विस्तार है समग्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब। 
यह दसों पातशाहियों की जाग्रत ज्योति है। 
यह गुरु नानक निरंकार की वह गददी है जिसे कहा गया है-
पोथी परमेसरु का थानु।।
इसी ज्योति को सतिगुरु ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में उतारा है।

गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥ 



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