परमात्मा का नूर पटना साहिब में

 


जोति रूपि हरि आपि गुरु नानकु कहायउ
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1408
 
आपि नराइणु कला धारि जग महि परवरियउ
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1395

गुरु नानक पातशाह दसवें स्वरूप में प्रकट हो रहे हैं। आध्यात्मिक अनुभव-प्रकाश से भरा एक दरवेश फ़कीर है और उसका नाम है पीर भीखण शाह। शाम का वक्त है। पीर भीखण शाह को कुछ अनुभव हुआ है और उन्होंने पटना साहिब की ओर सजदा किया है। उनके शिष्य ने पूछा कि पीर साहिब आज आपने सजदा इस ओर किया है? अब पीर साहिब फ़रमाते हैं कि आज खुदा का नूर इस ओर से प्रकट हुआ है, उस प्रेम का प्रकाश पटना साहिब में प्रगट हो गया है। प्रभु केवल प्यार-ही-प्यार है। प्रभु को, निरंकार को, ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा नहीं देख सकते हैं। वह अगम हैं, अगोचर है, अगाध है।
 
आपि नराइणु कला धारि जग महि परवरियउ
 
पर जिस समय मृत्युलोक में वह प्रकट होता है, उस समय खुशकिस्मती यह है कि इस संसार के लोग उस प्रकाश के, खुदा के, उस नूर के दर्शन कर सकते हैं। 

हम सभी इस लोक में अपने कर्मों में बँधे हुए आते हैं।
पर वह प्रभु तो प्रेम से बँधा आता है। 
वह प्रभु तो प्रेम का ही खेल खेलता है।

पीर साहिब उसी सीध में चल पड़े हैं और पहुँचे हैं पटना साहिब। घर पहुँचे और जाकर उस ईश्वरीय बालक के सामने दूध से भरे दो कटोरे पेश कर दिए। गरीब निवाज, सच्चे पतशाह, मेरे साहिब उस ईश्वरीय बालक गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने अपने छोटे-छोटे कोमल और पावन हाथ दोनों कटोरों पर रख दिए। पीर साहिब का सिर झुक गया है। 

जिस समय दुनिया पर ईश्वरीय प्रेम बरसता है तो वह सबका साँझा होता है। 
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश सबके लिए साँझा है 
इसी प्रकार अकाल पुरख का नूर, खुदा का नूर और उसका ज़हूर भी सबके लिए साँझा है।
पीर साहिब ने इस्लाम मजहब और हिन्दू धर्म के, दूध के दो कटोरे ईश्वरीय बालक के सामने रखे हैं और दसवें गुरु नानक, अपने छोटे-छोटे शुभ अैर पावन हाथ दोनों कटोरों पर रख देते हैं। वे संदेश दे रहे हैं कि हम दोनों धर्मों के साँझे हैं। फिर जगत गुरु, साँझे परमेश्वर, खुदा के उस नूर के आगे शीश झुकाते हुए पीर साहिब ऐलान करते हैं कि प्रेम का पैगम्बर, प्रेम का मसीहा और प्रेम का औलिया दुनिया में प्रकट हो गया है।

प्रेम का एक खेल उसी दिन से आरम्भ हो गया। प्रेम की अमरगाथा शुरू हो गई। दशमेश पिता के प्रकट होने के साथ प्रेम स्वयं ही प्रकट हो गया। प्रेम की उस अमरगाथा को ही हमें ग्रहण करना है। प्रेम का जो खेल उन्होंने खेला, प्रेम की लीला, ईश्वरीय लीला उन्होंने रची है, उस लीला के कुछ ज्योतित रूप हमें याद करने हैं। जो उस समय प्रेम के पैगम्बर के साथ पीर साहिब के दिल में भी उमड़ रहा है

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

Gobind Prem

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