नम्रता के सब से बड़े पैग़म्बर

 


श्री गुरु नानक साहिब ग़रीबों, दलितों, अछूतों, अपाहिजों और बीमार-पीड़ितों के लिए सब से महान पैग़म्बर थे। उन्होंने स्वयं को ग़रीबों व पीड़ितों का साथी माना और अपनी करुणा-कृपा से उनका कायाकल्प किया।

नीचा अंदरि नीच जाति नीची हू अति नीचु

नानकु तिन कै संगि साथि वडिआ सिउ किआ रीस

-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 15
श्री गुरु नानक साहिब स्वयं को नीचों से भी नीच और नीचों के संगी समझते थे। उच्च जाति में जन्म लेने वालों से उनका कुछ भी सांझा नहीं था। उनकी लम्बी धर्मयात्राओं के दौरान ग़रीब, बीमार और पीड़ित ही उनकी कृपादृष्टि के पात्रा बने। यह मानते हुए कि सभी उस परमात्मा के बच्चे हैं, गुरु साहिब ने हिन्दू-मुसलमान तथा नीची जात अथवा ऊँची जात वालों में किसी भेदभाव को स्वीकार नहीं किया। 

प्रेम का यह महान पैग़म्बर तो संसार की समूची मानव जाति को एक पवित्र रिश्ते, प्यार के रिश्ते में बांधने के लिए आए थे, एक नीची जाति में जन्मा हिन्दू ‘भाई बाला’ और एक नीची जाति का मुसलमान ‘भाई मरदाना’ उनके हमेशा के साथी थे।


गुरु नानक साहिब अपनी अनन्त कृपा उन्हीं लोगों पर करते थे जो जीवन के सच्चे रास्ते से भटक जाते थे। अपनी अपार कृपा से कातिलों, डाकुओं और मानव भक्षियों को उन्होंने संतस्वरूप बना दिया। उन्होंने पापदूषित व्यक्तियों को दैवी गुणों से युक्त कर दिया। उनकी इस ईश्वरीय कृपा से ग़रीब, नीच, निंदक और दोषी व्यक्तियों का भी उद्धार हुआ।


प्रेमाभक्ति और भगवद् प्रेम में अहंकार का कोई स्थान नहीं है। इसलिए श्री गुरु नानक साहिब जी के गृह (भक्तिभाव) में ग़रीबी, नम्रता व विनम्रता का प्रत्यक्ष बोलबाला देखने में आता है। 

श्री गुरु नानक साहिब ईश्वरीय प्रेमस्वरूप थे और विनम्रता के अवतार थे।
श्री गुरु नानक साहिब के पवित्र जीवन काल की सारी पावन और महत्त्वपूर्ण घटनाएँ जिस तथ्य को प्रकट करती हैं, वह है असत्य पर सत्य की जीत, अहंकार पर नम्रता और ग़रीबी (दीनता) की जीत तथा घृणा और वैर-विरोध पर प्रेम की जीत। 

सभी उनके पवित्र चरण-कमलों में दण्डवत् प्रणाम करते थे। उनकी दिव्य आभा का प्रभाव उन सभी पर पड़ता था। महान नम्रता, प्रेम, कृपालुता और दयालुता के प्रत्यक्ष अवतार जब दयालपुर (मिन्टगुमरी) में पधारे, तो उन कृपासिन्धु ने शहर के बाहर एक ग़रीब कोढ़ी की कुटिया का दरवाज़ा जाकर खटखटाया और ईश्वर के नाम की सुगन्धि से उस स्थान को सुरभित कर दिया। उस सुगन्धि के फैलते ही सारा दयालपुर उन के चरणों पर गिर पड़ा।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने गुरु नानक साहिब जी के चार स्वरूपों पर प्रकाष डालते हुए एक बार इस तरह फ़रमाया।
1. निरंकार- श्री गुरु नानक साहिब स्वयं ही निरंकार परब्रह्म हैं।

गुरु नानकु नानकु हरि सोइ।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 865
2. साकार- निरंकार ने स्वयं ही गुरु नानक साहिब जी का चोला धारण किया।
जोति रूपि हरि आपि गुरु नानकु कहावउ।।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 1408
3. गुरबाणी

बाणी गुरु गुरु है बाणी।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 982
4. नम्रता- ग़रीबी उन का चौथा स्वरूप है।


महान जगत् गुरु ने अपने वास्तविक स्वरूप को नम्रतावश प्रत्यक्ष नहीं होने दिया। उनकी वास्तविकता तो उनके नम्रतापूर्ण लोक-व्यवहार में छिपी हुई थी। साधारण लोगों के लिए उनके असली स्वरूप को जानना और पहचानना असंभव था। श्री गुरु नानक साहिब ने अपनी सच्ची पहचान की बख़्शिश तो किसी ईश्वरीय कृपाप्राप्त व्यक्ति पर ही की।

जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 11
गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥

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