गुरु नानकु नानकु हरि सोई॥
अपनी अमृतबाणी में जिस तरह उन्होंने गुरु नानक पातशाह के परम सत्य को, परम श्रेष्ठता को, परम विशेषता को और परम भगवत्ता को प्रकट और प्रकाशित किया है तो,
पोथी परमेसर का थानु॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब सच्चे पातशाह के प्रति भी वही प्रकाश व्यक्त किया है। गुरु नानक पातशाह के उस परम सत्य को पूरी श्रद्धा से स्पष्ट किया है।
पाँचवें गुरु साहिब अपने नित्य नेम को बताते हुए श्री गुरु ग्रंथ साहिब में श्री गुरु नानक देव जी निरंकार को, निरंकार के रूप में किस तरह प्रकट करते हैं-
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंदु॥
गुरु मेरा पारब्रहमु गुरु भगवंतु॥
गुरु मेरा देउ अलख अभेउ॥
सरब पूज चरन गुर सेउ ॥
गुर बिनु अवरु नाही मै थाउ॥
अनदिनु जपउ गुरू गुर नाउ ॥
गुरु मेरा गिआनु गुरु रिदै धिआनु ॥
गुरु गोपालु पुरखु भगवानु ॥
गुर की सरणि रहउ कर जोरि॥
गुरू बिना मै नाही होरु ॥
गुरु बोहिथु तारे भव पारि॥
गुर सेवा जम ते छुटकारि॥
अंधकार महि गुर मंत्रु उजारा ॥
गुर कै संगि सगल निसतारा ॥
गुरु पूरा पाईऐ वडभागी ॥
गुर की सेवा दूखु न लागी ॥
गुर का सबदु न मेटै कोइ ॥
गुरु नानकु नानकु हरि सोइ ॥
- गुरु ही मेरी आराध्ना और गुरु ही मेरा इष्ट है।
- गुरु ही मेरा परमेश्वर और गुरु ही मेरा सर्वश्रेष्ठ स्वामी है।
- मेरा गुरु अदृश्य और अगम है।
- सभी मेरे गुरु के श्रीचरणों की पूजा करते हैं।
- गुरु के बिना मेरा और कोई सहारा नहीं है।
- मैं रात-दिन अपने गुरु के नाम का जाप करता हूँ।
- गुरु ही मेरा दिव्य ज्ञान है और मैं मन ही मन अपने गुरु का ही ध्यान करता हूँ।
- गुरु ही मेरा मालिक है, वही परम आत्मा है।
- विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़ कर मैं अपने गुरु के संरक्षण में निवास करता हूँ।
- गुरु के बिना मेरा कोई नहीं है। गुरु ही मुझे भवसागर से पार उतारने वाले जहाज़ है।
- गुरु की सेवा करने से यम से छुटकारा मिल जाता है। गुरु का नाम ही मन में प्रकाश कर सारे अंधेरों को दूर कर देता है। गुरु की पवित्र संगति से ही सब का उद्धार हो सकता है।
- अच्छे भाग्य से ही गुरु की सेवा मिलती है।
- गुरु की सेवा करने से दुःखों का निवारण हो जाता है। गुरु का वचन सदा अटल है।
गुरु नानक ही स्वयं अकाल पुरुष हरि, पारब्रह्म और परमेश्वर हैं।

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