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Showing posts from 2024

प्रेम के पैगम्बर हजरत ईसा

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  साध संगत जी! हजरत ईसा चले जा रहे थे। एक जगह लोग का जमघट लगा था।  एक महिला सबके बीच खड़ी थी। आस पास खड़े सभी लोगों के हाथ में पत्थर थे। वहाँ पादरी भी खड़े थे और उन्होंने आदेश दिया- इस औरत को पत्थर मारो, इसने पाप किया है। वह पादरी हजरत ईसा जी से चिढ़ते  थे। उन्होंने अपने हाथ में एक सुनहरा अवसर देखा और उन्हें भी आमंत्रित किया। जब पादरियों ने उन्हें  बुलाया और कहा-  उस महिला ने यह पाप किया है।  चूँकि आप भी भगवान को मानने वाले हो,  इसको मौत की सजा मिली है इसलिएआप भी इसको मारने के लिए पत्थर उठा लें। हजरत ईसा ने उस महिला की ओर देखा। वह बहुत डरी हुई थी। उस बेचारी ने भाँप लिया था कि मेरा अन्त आ गया है।  वह मृत्यु से डरी हुई थी। उसने प्रभु  यीशु की ओर देखा कि यही वह पैगम्बर है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह आया है। वह दया भाव से प्रभु यीशु को देख रही है कि-  हे गरीब निवाज़, मुझ पर दया करो। अब हजरत ईसा जी,  प्रार्थना में उस महिला के गुरु नानक जी हैं हज़रत ईसा मसीह के रूप में हैं। वह विनती कर रही है कि- हे गरीब निवाज! मुझे बख्श दो । मेरे...

मैं कुत्ता बाबे नंद सिंह दा, डिप्टी मेरा नाउँ।

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  विषय-विकारों का विष एक बार संगत को सम्बोधित करते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज ने यह वचन फरमाया- साँप से लड़कर नेवला साँप को मार देता है। साँप का विष नेवले पर भी चढ़ता है पर उसे जंगल की जड़ी-बूटी याद है। वह जाकर उसे सूँघ लेता है और साँप का विष उतर जाता है। यदि वह बूटी कहीं निकट न हो तो नेवला अपनी मनोलय (मनोलीनता-वृत्ति) के द्वारा उस बूटी का सेवन करता है और विष उतर जाता है।  हम दुनिया में काम काज करते हैं। विषय-विकारों की जहर (विष) हर पल चढ़ा रहता है। इस जहर को उतारने का भी ढ़ंग उस समय अपने इष्टदेव के चरणों में बैठकर नाम का स्मरण और इष्टदेव के दर्शन करने से विषय-विकारों का विष उतर जाता है। यदि इष्ट का स्वरूप-दर्शन निकट संभव न हो तो वृत्ति (मनोलयता) के द्वारा उनके चरणों का ध्यान करने व उनका स्मरण करने से भी यह विष उतर जाता है और वृत्ति भी इस अभ्यास से पुष्ट होती जाती है। लै डिप्टी, हुण खीसा गुरु नानक दा  ते हथ तेरा, कदी तोट नहीं आवेगी। बाबा जी के दर्शन करने के लिए एक बार देर रात को अमृतसर से एक बड़ी संगत ‘ठाठ’ (कुटिया) पर पहुँची। देर होने और भोजन-प्रसाद न पाने से संगत भूखी- प्यास...

ਮੈਂ ਕੁੱਤਾ ਬਾਬੇ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਦਾ ਡਿੱਪਟੀ ਮੇਰਾ ਨਾਉਂ |

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  ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰ ਇਕ ਵਾਰ ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਮੁਖਾਤਿਬ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਬਾਬਾ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਨੇ ਇਹ ਬਚਨ ਫੁਰਮਾਇਆ- ਨਿਓਲਾ , ਸੱਪ ਨਾਲ ਲੜ ਕੇ ਸੱਪ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਸੱਪ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰ ਨਿਓਲੇ ਨੂੰ ਵੀ ਚੜ੍ਹਦਾ ਹੈ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਜੰਗਲ ਦੀ ਇਕ ਬੂਟੀ ਯਾਦ ਹੈ , ਜਾ ਕੇ ਸੁੰਘ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸੱਪ ਦੀ ਜ਼ਹਿਰ ਉਤਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਜੇ ਉਹ ਬੂਟੀ ਨੇੜੇ ਨਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਨਿਓਲਾ ਉਸ ਦਾ ਬਿਰਤੀ ਦੁਆਰਾ ਸੇਵਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਜ਼ਹਿਰ ਉਤਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਾਂ , ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਜ਼ਹਿਰ ਹਰ ਦਮ ਚੜ੍ਹੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਜ਼ਹਿਰ ਉਤਾਰਨ ਦਾ ਢੰਗ ਹੈ , ਉਸ ਵੇਲੇ ਇਸ਼ਟ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਨਾਮ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਇਸ਼ਟ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨਾ , ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰ ਉਤਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜੇ ਨੇੜੇ ਇਸ਼ਟ ਦਾ ਸਰੂਪ ਸੰਭਵ ਨਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਬਿਰਤੀ ਦੁਆਰਾ ਉਸ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਧਰ ਕੇ ਉਹਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਨਾ ਤੇ ਇੰਝ ਵੀ ਜ਼ਹਿਰ ਉਤਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਬਿਰਤੀ ਨੌਂ-ਬਰ-ਨੌਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਲੈ ਡਿੱਪਟੀ ਹੁਣ ਖੀਸਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦਾ ਤੇ ਹੱਥ ਤੇਰਾ ਕਦੀ ਤੋਟ ਨਹੀਂ ਆਵੇਗੀ । ਇਕ ਵਾਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸੰਗਤ ਰਾਤ ਨੂੰ ਦੇਰ ਨਾਲ ਬਾਬਾ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਠਾਠ ਤੇ ਪਹੁੰਚੀ । ਦੇਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪਰਸ਼ਾਦਾ ਨਾ ਛਕਣ ਕਾਰਨ ਸੰਗਤ ਭੁੱਖੀ ਸੀ । ਬਾਬਾ ਨਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਬਾਬਾ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ...

Salami with Band

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Baba Narinder Singh Ji  was a pioneer in offering his homage in yet another unique manner.  On the auspicious occasions of Annual Samagams of  Baba Nand Singh Ji Maharaj  in August every year when hundreds of Akhand paths are simultaneously recited in Mahan Babaji’s sacred memory and when lakhs of devotees visit  Nanak sar to pay their homage,  Baba Narinder Singh Ji  arranged PAP Pipers and Brass Bands to offer salutations to his Supreme Monarch,  Baba Nand Singh Ji Maharaj . Bands used to play devotional music for hours and Baba Narinder Singh Ji offered Band salami at Bara Dari, SachKhand, Chhota Thath and lastly in front of the Bara Thath. With thousands of devotees around, it used to be a touching and angelic vision. It was a collective homage, sajda and salute to the Lord. His call to Mahan Babaji used to be direct and personal, a face-to-face conversation and prayer. Everyone present experienced the Divine presence of Mahan Babaji....

बैंड सहित सलामी

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  पिता जी (बाबा नरिंदर सिंह जी) द्वारा बाबा नंद सिंह जी के प्रति आदर व्यक्त करने की एक अन्य निराली विधि थी।  हर वर्ष अगस्त माह में बाबा नंद सिंह जी महाराज के वार्षिक समागम के शुभ अवसर पर जब संगत आती है तो बाबा जी की स्मृति में सहस्त्रों अखण्ड पाठ एक साथ होते हैं। लाखों श्रद्धालु नानकसर में आते हैं। उस समय बाबा नरिन्द्र सिंह जी महान् बाबा नंद सिंह जी महाराज को सलामी देने हेतु पी.ए.पी. पाइपर्ज़ व ब्रास बैंड का प्रबन्ध करते थे। यह बैण्ड काफी समय तक भक्ति संगीत की धुनें बजाते थे। बाबा नरिन्द्र सिंह जी बारादरी, सचखण्ड, छोटा ठाठ तथा अन्त में बड़े ठाठ के सामने बैण्ड की सलामी देते थे। हज़ारों श्रद्धालु आस-पास खड़े होते थे। यह बहुत ही हृदय-स्पर्शी व अनोखा दृश्य होता था। इस रूप में बाबा जी को श्रद्धांजलि, प्रणाम तथा सलामी दी जाती थी। बाबा जी के साथ वे प्रत्यक्ष व आमने-सामने होकर वन्दन तथा अरदास करते थे। सहस्त्रों एकत्रित संगतों को बाबा जी की दिव्य उपस्थिति की अनुभूति होती थी। बाबा नरिन्द्र सिंह जी के विचारों व गहरे प्रेम के प्रभाव से प्रत्येक व्यक्ति के हृदय से विरह का वेग उमड़ पड़ता था...

भाई मति दास जी की शहादत

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  एक बार पूज्य पिता जी बड़े वैराग्य में बैठे थे, संगत भी बहुत बैठी थी, दास भी चरणों में हाज़िर था । वे इतने वैराग्य में आ गए कि सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। ऐसे लग रहा था जैसे पिता जी कोई दृश्य देख रहे हों। जिस तरह से हर कोई पिताजी को देख रहा है। उनका वैराग बढ़ता ही जा रहा था। फिर स्वयं ही बताया - भाई मति दास जी की शहादत की तैयारी हो रही है।  जो दृश्य उस वे समय देख रहे थे और साध संगत जो उन्होंने बताया। मैं उनकी ज़ुबान में आपसे साझा करता हूँ। भाई मतिदास जी को चांदनी चौक में भरी भीड़ के सामने शहीद होने के लिए तैयार किया जा रहा है। एक शिकंजा, जिसमें उन्हें बाँधना है, खड़ा है। उनसे पूछा गया - आपकी कोई आखिरी इच्छा है? उस समय भाई मतिदास जी ने क्या कहा? एक सिक्ख की,  गुरुमुख की पहली और आखिरी इच्छा क्या होती है?  मुख गुरु की ओर हो।  भाई मतिदास जी उत्तर देते हैं-  प्रिय मित्रों, मेरा मुख मेरे गुरु की ओरकर दो। तुम्हें जो करने की सलाह दी गई है वह करो, लेकिन मुख गुरु की ओर  कर दो। उनका मुख गुरु जी की ओर कर दिया गया और उन्हें शिकंजे में जकड दिया गया।  गुरु तेग बहादर...