बैंड सहित सलामी
पिता जी (बाबा नरिंदर सिंह जी) द्वारा बाबा नंद सिंह जी के प्रति आदर व्यक्त करने की एक अन्य निराली विधि थी।
हर वर्ष अगस्त माह में बाबा नंद सिंह जी महाराज के वार्षिक समागम के शुभ अवसर पर जब संगत आती है तो बाबा जी की स्मृति में सहस्त्रों अखण्ड पाठ एक साथ होते हैं। लाखों श्रद्धालु नानकसर में आते हैं। उस समय बाबा नरिन्द्र सिंह जी महान् बाबा नंद सिंह जी महाराज को सलामी देने हेतु पी.ए.पी. पाइपर्ज़ व ब्रास बैंड का प्रबन्ध करते थे।
यह बैण्ड काफी समय तक भक्ति संगीत की धुनें बजाते थे। बाबा नरिन्द्र सिंह जी बारादरी, सचखण्ड, छोटा ठाठ तथा अन्त में बड़े ठाठ के सामने बैण्ड की सलामी देते थे। हज़ारों श्रद्धालु आस-पास खड़े होते थे। यह बहुत ही हृदय-स्पर्शी व अनोखा दृश्य होता था। इस रूप में बाबा जी को श्रद्धांजलि, प्रणाम तथा सलामी दी जाती थी। बाबा जी के साथ वे प्रत्यक्ष व आमने-सामने होकर वन्दन तथा अरदास करते थे। सहस्त्रों एकत्रित संगतों को बाबा जी की दिव्य उपस्थिति की अनुभूति होती थी। बाबा नरिन्द्र सिंह जी के विचारों व गहरे प्रेम के प्रभाव से प्रत्येक व्यक्ति के हृदय से विरह का वेग उमड़ पड़ता था तथा बाबा जी की पवित्र याद में श्रद्धालुओं के नयनों से अश्रुधारा बहने लगती थी।
अनगिनत खण्डों के स्वामी को सलामी बहुत ही सही ढंग से देनी बनती है। सतिगुरु, सच्चे पातशाह व सर्वोच्च बुर्ज़ हैं, उनके पवित्र चरण-कमलों में सलामी पेश करना बहुत ही तुच्छ सेवा है।
उनको अपने प्रिय स्वामी, प्राण-आधार तथा सर्वोच्च स्वामी के समक्ष अरदास करते समय आत्मा को शान्ति प्राप्त होती थी। वह पुकार उनकी पवित्र आत्मा की गहराई से निकलती थी।इसलिए यह प्रत्येक श्रद्धालु के हृदय को दुर्लभ भावनाओं से भर देती थी। जिससे उसे मानसिक शान्ति की प्राप्ति होती थी। इस प्रभु-पुकार के क्षणों में उनकी आँखों से अश्रुधारा बहनी आरम्भ हो जाती थी। यह अपने सबसे प्रिय पुत्र की सलामी तथा उस के शुद्ध प्रेम को स्वीकार करने तथा स्वामी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने के चिह्न थे। बहुत-सी भाग्यशाली आत्माएँ इस आत्मिक हिलोरा देने वाले मनोहर दृश्य को देखती थीं। जो श्रद्धालु इस रूहानी अनुभव की बातें बड़ी प्रसन्नतापूर्वक बताते थे, उन सबको एक जैसी अनुभूति होती थी। इस आध्यात्मिक अनुभव की स्मृति उन्हें आत्म-रस के देश में ले जाती थीं।
बड़े-बड़े अफसर भी समागम में नियत समय पर पहुँचते थे। उनके पहुँचने पर बैंड की सलामी दी जाती है। पर यहाँ पिता जी अपने मालिक बाबा जी को नम्रता, प्रार्थना व तीव्र इच्छा से बुलाते थे। जिस से सब के हृदय में विरह की अग्नि धधक उठती थी। पिता जी की आत्मा की पुकार सुन कर बाबा जी द्वारा अपने पवित्र स्वरूप में प्रत्यक्ष उपस्थित होने का आभास होता था। जिससे एकत्रित संगतों में से कई श्रद्धालुओं के नयनों से विरह की तड़प में नीर बहना आरम्भ हो जाता था। वे लोग भाग्यशाली थे, जिन को इस शुभ समय को देखने का अवसर मिलता था तथा जिन के चक्षुओं से नीर बहता था। सारे वातावरण तथा सम्पूर्ण स्थान में बाबा जी की उपस्थिति से थरथराहट उत्पन्न हो जाती थी। यह सब बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रेम में भीगी आत्माओं के आनंद का प्रकट होना था।
गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।
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