दरवेसी को जाणसी विरला कोई दरवेसु

 


साध संगत जी, मेरे बाबा नंद सिंह साहिब का जो पहला नियम था, वह था, किसी से कोई याचना नहीं करनी।

बाबा नंद सिंह साहिब जंगल के बीच से गुजर रहे हैं। सिर्फ एक चादर ओढ़ी हुई है। रास्ते में एक नाला आ गया है, जो पूरा भरा हुआ है और बड़े तीव्र वेग से बह रहा है।

साहिब खड़े हो गए। नाले को पार करना है। इतनी ही देर में पीछे से एक और व्यक्ति आकर उसी नाले के किनारे खड़ा होकर उस नाले को पार करने लगा। उसने बाबा जी की ओर देखकर पूछा कि क्या आपको भी नाला पार करना है? तो बाबा जी ने हाँ कह दी। 

वह व्यक्ति कहने लगा- जी, मैं आपको पार करवा देता हूँ।  

और उसने बाबा जी को वह नाला पार करवा दिया। पार किनारे पहुँचते ही उस व्यक्ति ने कहा- मेरी मजदूरी? 

साहिब ने उसकी तरफ देखा, अपने शरीर पर ओढ़ी हुई चादर उतारी और उसे देने लगे। 

साहिब उस व्यक्ति से कहने लगे- देख भले आदमी, हम फकीर लोग हैं, दरवेश हैं। हम अपने पास पैसा नहीं रखते। हाँ, हमारे पास एक चादर है। इस चादर को तुम ले लो। 

जब देने के लिए उन्होंने वह चादर उतारी तो उस व्यक्ति ने देखा कि बाबा जी ने एक सिक्खी कच्छहरा (सिक्ख मर्यादित लम्बा कच्छा) पहन रखा है। स्वाभाविक रूप से उस व्यक्ति के मुख से निकला- आप तो सिक्ख हो!

तो उसका जवाब बाबा नंद सिंह जी साहिब दे रहे हैं- हम गुरु नानक जी के सिक्ख हैं, पर हैं दरवेश और फकीर। 

फिर वह कहने लगा कि फकीर से क्या अभिप्राय है?

बाबा जी फरमाने लगे- फकीर वो है जो फाकों में मस्त रहे, फाकों में तृप्त रहे, वही फकीर है। 

यह सारा संसार,जिसे गुरु तेग बहादुर साहिब जंजाल कहते हैं, गुरु नानक पातशाह जिसे झूठ का पसारा कहते हैं, जो सिर्फ अग्नि-सागर है, आग का ही समुद्र है। जिसने भी इस जंजाल से, पूरे संसार से किनारा कर लिया है वही पूरा फकीर है। 

इस पर उस व्यक्ति ने पूछा कि फिर ‘र’ का क्या मतलब है? 

(उस व्यक्ति के कहने का अभिप्राय यह था कि फाके की बात तो समझ में आ गई, पर फकीर, फाका रखने वाला के अंतिम अक्षर ‘र’ का क्या अर्थ है?)

बाबा नंद सिंह जी महाराज समझाने लगे- जो सबके उपर रहम करता है, यह ‘र’ फकीर के अंतिम अक्षर का रूप है। 

साधसंगत जी, उस वक्त बाबा नंद सिंह साहिब जिस तरह फरमा रहे थे, उसे याद कर पिताजी कहने लगे- 

मेरे साहिब बाबा नंद सिंह साहिब, मेरे गुरु नानक पातशाह, दसों पातशाहियाँ, दया और करुणा से भरे हुए हैं। उनका स्वरूप ही दया है, करुणा है, रहम है और उनका स्वरूप ही सबको बख्शना है। 

उस समय बाबा नंद सिंह साहिब फरमा रहे थे- वे सब पर रहम करते हैं, वे सब पर दया करते हैं। 

ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥
ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥

ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥
आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥

ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु ॥
ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु ॥

श्री सुखमनी साहिब

श्री गुरु ग्रंथ साहिब,अंग 272-273

सबके चरणों की धूल बनकर नम्रता और गरीबी से वह सब पर दया और करुणा करता है, सबको क्षमा करता जाता है। 

इस बारे में बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया- वह सब पर रहम करता है, दया करता है, करुणा करता है। 

यह सब सुनकर नाले को पार कराने वाला व्यक्ति हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और कहने लगा-  गरीब निवाज़, मुझ पर दया करो, करुणा करो। 

बाबा नंद सिंह साहिब ने उसकी तरफ देखा। 

दया के समुद्र सरीखे बाबा जी कहने लगे- देख, भले लोका (भले मानुस) तूने हमें यह नाला पार करवाया है, हम तुम्हें यह भवसागर पार करा देंगे। 

यह कहकर बाबा नंद सिंह साहिब अपने आगे के रास्ते पर चल दिये।

बाबा नंद सिंह जैसा ऋषि न कोई हुआ है, न कोई होगा।

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 4)

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