चार मुए तो किआ भइआ जीवत कई हजार॥

- साध संगत जी! हमें अपने दशमेश पिताजी का यह वाक्य कभी नहीं भूलना चाहिए। सच्चे पातशाह जिस वक्त दमदमा साहिब में पहुँचे हैं उस समय साहिब के चरणों में, दरबार में बहुत बड़ी संगत हाजिर है। हजारों की संख्या में सिक्ख वहाँ बैठे हैं माता जी वहाँ पहुँची हैं तो वे सच्चे पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह साहिब से पूछती हैं- मेरे लाडले नजर नहीं आ रहे, संकेत चारों लाडलों की तरफ था इसलिए उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह साहिब की तरफ देखते हुए कहा कि लाडले नजर नहीं आ रहे। उस समय दशमेश पिताजी माताजी की तरफ देखते हैं और फिर इशारा किस ओर करते हैं? सारी संगत की ओर। वहाँ उपस्थित सभी सिक्खों की ओर दोनों हाथ करके माताजी को जवाब देते हैं- इन पुतरन के सीस पर वार दीए सुत चार ॥ चार मुए तो किआ भइआ जीवत कई हजार ॥ साध संगत जी! मेरे दशमेश पिताजी उस समय वहाँ उपस्थित कई हजार सिक्खों की तरफ दोनों भुजाएँ उठाकर कहते हैं- इन पुत्रों के शीश पर मैंने अपने चारों पुत्र वार दिए हैं । और फिर उसी महाभाव को आगे बढ़ाते हुए फरमाते हैं- चार मुए तो किआ भइआ जीवत कई हजार ॥ ...