गुरु के लिए स्वयं का सम्पूर्ण समर्पण
सिक्ख ने अपने आपको इष्ट के सम्मुख समर्पित कर दिया है। अपने आपको बेच दिया है, ‘मैं-मेरी’ गुरु के सामने रख दी है, गुरु की गोद में जा बैठा है। जब जमीन बेच दी है तो आमदनी की ओर क्यों देखता है! भला, जो जमीन बेच दी गयी है तो उस पर फसल होने-न-होने की तुम्हें चिंता क्यों? मालिक जाने! जमीन बिक गयी, मालिक ने तुम्हें देखभाल के लिए रखा है। तुम्हारा काम देखभाल करने का है। आमदनी या नुकसान से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं। अब हानि-लाभ कैसा? हानि-लाभ का मालिक तो तुम्हारा इष्ट, गुरुदेव जो बैठा है।
बाबा नंद सिंह जी महाराज
सिक्ख गुरु की गोद में बैठा है। अब देस या परदेस, सब स्थानों पर मालिक ही उसका रक्षक है। अब सिक्ख ने ‘मैं और मेरी’ गुरु के आगे रख दी है। यह काम क्षण-भर का है, गुदड़ी में लाल छिपे हैं। विनयशील होकर गुरु चरणों पर गिर पड़, बस बेड़ा पार है। शरण लेने में तुम्हारी ओर से विलम्ब है, उसकी क्षमा में कोई विलम्ब नहीं है। महसूल (चुंगी) मांगने वाला तभी तक महसूल मांगता है, जब-तक तेरे सिर पर गठरी है। जब गठरी सिर से उतार कर फैंक दी तो कैसा महसूल और कैसी रोक? जब-तक सिर पर गठरी है, दाम भरने पड़ेंगें।
बाबा नंद सिंह जी महाराज
जउ लउ पोट उठाई चलिअउ तउ लउ डान भरे॥
पोट डारि गुरु पूरा मिलिआ तउ नानक निरभए॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी अंग-214
गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।
(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 3)
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