सिक्ख धर्म पतिव्रत धर्म है।
सिक्ख धर्म पतिव्रत धर्म है
-बाबा नंद सिंह जी महाराज
सिक्ख धर्म पतिव्रत धर्म है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की मर्यादा के अनुसार एक सिक्ख विशेष तौर पर सतिगुरु का उपासक होता है। अपने सर्वव्यापक भगवान् के सच्चे और पवित्र रूप में लीन, सिक्ख अन्य आध्यात्मिक मार्गों व अन्य पूजा स्थानों के लिए अपने मन में प्रेम और आदर रखता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में परमात्मा के सभी भक्तों, उनके रंग-रूप, धर्म, जाति और वर्ग का बिना किसी भेदभाव के एक जैसा सम्मान व एक जैसी प्रतिष्ठा है।
एक सच्चा सिक्ख अपने प्रियतम सतिगुरु के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुन सकता। वह स्वयं भी किसी दूसरे की आस्था, विश्वास, धार्मिक पंथ, ग्रंथों और पूजा स्थानों के विरुद्ध एक भी ऐसा शब्द नहीं बोलता जिससे किसी की भावना को ठेस पहुँचे।
एक सिक्ख पूजा और प्रार्थना की सभी विधियों का सम्मान करता है।
सभी अवतार, पैगम्बर और गुरु उसी सर्वश्रेष्ठ परम ज्योति से प्रकट हुए हैं और एक जैसे सम्मान और पूजा के योग्य है।
-बाबा नंद सिंह जी महाराज
इन स्थूल आँखों से सभी ईश्वरीय स्वरूपों की दिव्यता को देखना असम्भव है किंतु जब किसी पर दिव्य दृष्टि की कृपा होती है तो उसके लिए यह सब प्रत्यक्ष हो जाता है कि सारे स्वरूप एक ही सर्वोच्च स्रोत से प्रकट हुए हैं।एक सच्चा सिक्ख अपने प्रियतम सतिगुरु के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुन सकता। वह स्वयं भी किसी दूसरे की आस्था, विश्वास, धार्मिक पंथ, ग्रंथों और पूजा स्थानों के विरुद्ध एक भी ऐसा शब्द नहीं बोलता जिससे किसी की भावना को ठेस पहुँचे।
गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।
(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 3)
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