सतिगुर अगै ढहि पउ सभु किछु जाणै जाणु ॥
बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-
‘मैं-मेरी’ की पोटली को शीश से उतारकर गुरु के चरणों में रख दो।
गुरु अमरदास जी फरमाते हैं-
तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥
फरमाया - इस पोटली को ही तो सारे दुःख चिपटे हुए हैं। इस को ही तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार चिपटे हुए हैं। ऐसी पोटली अपने पास क्यों रखनी है! इसको तो गुरु के चरणों में रख दो।
गुरु नानक के बनकर रहो।एक के बनकर रहो और रोकर अरदास करो।हमारे पास आने की जरूरत नहीं है।
मेरे बाबा नंद सिंह साहिब ने कभी अपने साथ किसी को नहीं जोड़ा।
बाबा नंद सिंह साहिब ने अपने लिए सारे दुःख ही माँगें हैं एक भी सुख नहीं लिया। जितने भी दुःख पिताजी ने झेले, वे सब बाबा नंद सिंह साहिब से अपनी झोली में डलवा लिए।
माता भानी जी गुरु अमरदास जी की सुपुत्री हैं, पर वे अपने गुरुदेव पिता का दुःख नहीं देख सकती। कारण ? गुरु अमरदास जी दुःख सहने की सीख दे रहे हैं। सारी जिन्दगी उन्होंने दुःख ही झेला है।
गुरु अमरदास जी सच्चे पातशाह वृद्ध हो गए हैं। चौकी पर बैठे हैं। माता भाणी जी स्नान करवा रही हैं। उस समय चौकी का एक पाया टूटने लगा, जो कि कमजोर था। उस समय माता भाणी जी ने उस पाये के स्थान पर अपना हाथ रख दिया ताकि उनको स्नान करने में कोई तकलीफ न हो। स्नान करने के बाद गुरु साहिब जब वस्त्र धारण करने लगे तो देखा कि स्नान का जो जल कुंड में जा रहा है उसका रंग लाल था। जिस समय उन्होंने माता भाणी जी की ओर देखा तो यह पाया कि उनका हाथ लहूलुहान है। माता भाणी जी अपने निरंकार पिताजी का दुःख देख नहीं सकती थी। उन्होंने वह दुःख स्वयं अपने ऊपर ले लिया।
जिस समय गुरु अमरदास जी प्रसन्न हो कर फ़रमाते हैं - पुत्री, आज जो इच्छा हो माँग लो।
उस समय वे अपना आँचल आगे करके कहने लगी- गरीब निवाज़! ये जो गुरु नानक पातशाह की बख्शिश है वह इसी घर में रहे।
इस वक्त गुरु अमरदास जी ने फरमाया- देख भाणी, ये बख्शिश दुःखों से भरी है। गुरु नानक साहिब ने सारे दुःख अपने ऊपर लिए हैं, यहाँ दुःख-ही-दुःख है।
इस पर माता भाणी जी कहने लगीं- गुरु नानक के ये सारे दुःख मेरी झोली में डाल दो।
साध संगत जी! ये स्वयं दुःख लेने की बात अपने आप में एक आश्चर्य की बात है। गुरु अमरदास जी, तीसरे गुरु नानक, निरंकार को विनती करते हैं-
जगतु जलंदा रखि लै आपणी किरपा धारि ॥जितु दुआरै उबरै तितै लैहु उबारि ॥
- उस समय जलते, तपते संसार को किस तरह की ठंडक पहुँचाई है।
- चिरकाल तक साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश कर दिया है।
Comments
Post a Comment