सतिगुर अगै ढहि पउ सभु किछु जाणै जाणु ॥

 



गुरु नानक पातशाह से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक 239 वर्ष का अंतराल है। हम सभी इस संसार में एक-दूसरे में सुख ढूँढते हैं।
 
गुरु नानक पातशाह फरमाते हैं-
निरमलु साचा एकु तू होरु मैलु भरी सभ जाइ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 57

हम सभी मैल से भरे हुए हैं अगर हम अपनी मैल उतारना भी चाहते हैं तो एक-दूसरे से उतरवाना चाहते हैं। एक दुःखी दूसरे दुःखी से माँग क्या रहा है कि मुझे सुख दो।

बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-

‘मैं-मेरी’ की पोटली को शीश से उतारकर गुरु के चरणों में रख दो। 

गुरु अमरदास जी फरमाते हैं-

तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 918
क्या सौंपना है?

ये जितने कर्म हैं ये सारे इस मन, इस तन और धन के कारण होते हैं।

फरमाया - इस पोटली को ही तो सारे दुःख चिपटे हुए हैं। इस को ही तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार चिपटे हुए हैं। ऐसी पोटली अपने पास क्यों रखनी है! इसको तो गुरु के चरणों में रख दो।

सतिगुर अगै ढहि पउ सभु किछु जाणै जाणु ॥
आसा मनसा जलाइ तू होइ रहु मिहमाणु ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 646
साहिब फरमा रहे हैं कि अपनी आशाओं और इच्छाओं को आग लगाकर इस संसार में अतिथि बनकर रहो।
बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-
गुरु नानक के बनकर रहो। 
एक के बनकर रहो और रोकर अरदास करो। 
हमारे पास आने की जरूरत नहीं है।

 मेरे बाबा नंद सिंह साहिब ने कभी अपने साथ किसी को नहीं जोड़ा।

बाबा नंद सिंह साहिब ने अपने लिए सारे दुःख ही माँगें हैं एक भी सुख नहीं लिया। जितने भी दुःख पिताजी ने झेले, वे सब बाबा नंद सिंह साहिब से अपनी झोली में डलवा लिए।

माता भानी जी गुरु अमरदास जी की सुपुत्री हैं, पर वे अपने गुरुदेव पिता का दुःख नहीं देख सकती।  कारण ?  गुरु अमरदास जी दुःख सहने की सीख दे रहे हैं। सारी जिन्दगी उन्होंने दुःख ही झेला है।

गुरु अमरदास जी सच्चे पातशाह  वृद्ध हो गए हैं। चौकी पर बैठे हैं। माता भाणी जी स्नान करवा रही हैं। उस समय चौकी का एक पाया टूटने लगा, जो कि कमजोर था। उस समय माता भाणी जी ने उस पाये के स्थान पर अपना हाथ रख दिया ताकि उनको स्नान करने में कोई तकलीफ न हो। स्नान करने के बाद गुरु साहिब जब वस्त्र धारण करने लगे तो देखा कि स्नान का जो जल कुंड में जा रहा है उसका रंग लाल था। जिस समय उन्होंने माता भाणी जी की ओर देखा तो यह पाया कि उनका हाथ लहूलुहान है। माता भाणी जी अपने निरंकार पिताजी का दुःख देख नहीं सकती थी। उन्होंने वह दुःख स्वयं अपने ऊपर ले लिया। 

जिस समय गुरु अमरदास जी प्रसन्न हो कर फ़रमाते हैं - पुत्री, आज जो इच्छा हो माँग लो। 

उस समय वे अपना आँचल आगे करके कहने लगी- गरीब निवाज़! ये जो गुरु नानक पातशाह की बख्शिश है वह इसी घर में रहे। 

इस वक्त गुरु अमरदास जी ने फरमाया- देख भाणी, ये बख्शिश दुःखों से भरी है। गुरु नानक साहिब ने सारे दुःख अपने ऊपर लिए हैं, यहाँ दुःख-ही-दुःख है।

इस पर माता भाणी जी कहने लगीं-  गुरु नानक के ये सारे दुःख मेरी झोली में डाल दो। 

साध संगत जी! ये स्वयं दुःख लेने की बात अपने आप में एक आश्चर्य की बात है। गुरु अमरदास जी, तीसरे गुरु नानक,  निरंकार को विनती करते हैं-

जगतु जलंदा रखि लै आपणी किरपा धारि ॥
जितु दुआरै उबरै तितै लैहु उबारि ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 853
जिस धर्म के रास्ते से भी कोई निकल रहा है, सच्चे पातशाह! इस जलते तपते संसार की रक्षा करो।  

फिर माता भाणी जी ने जो माँगा था, वह खेल शुरु हो गया।

बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-
गुरु अर्जुन पातशाह ने एक तारनहार जहाज बनाकर सुशोभित किया है और स्वयं आग में आसन लगा लिया है। 
  • उस समय जलते, तपते संसार को किस तरह की ठंडक पहुँचाई है।
  • चिरकाल तक साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश कर दिया है। 

बाबा नंद सिंह साहिब फरमाते है-

जिस समय सतिगुरु आता है वह अपने ऊपर सारे दुःख लेकर संसार को मुक्त करता है। 

जिस समय गुरु हरिकृष्ण साहिब दिल्ली गए हैं, उस समय चारों और प्लेग की बीमारी फैली हुई है। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या सिक्ख, क्या ईसाइ? मेरे साहिब ने किसी का मजहब नहीं देखा। कभी खुदा का प्रकाश, राम-रहीम का प्रकाश क्या किसी अकेले का हो सकता है? 
यदि सूर्य की रोशनी सबके लिए सांझी है तो उसका प्रकाश बाँटा नहीं जा सकता, उस पर तो सबका अधिकार है।

जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इहु बिरदु सुआमी संदा ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 544
इस समय गुरु हरिकृष्ण साहिब फरमा रहे हैं- 
आप सभी गुरु नानक की शरण में आए हो, अपना सारा दुःख गुरु नानक जी को दे दो।
 
सारा दुःख साहिब ने अपने ऊपर ले लिया। 

बाबा नंद सिंह साहिब जी ने फरमाया-  जिस वक्त भी सतिगुरु आता है दुनिया के दुःखों का भुगतान करता है। 

फरमाया- वह कैसा सिक्ख है जो गुरु से अपना सुख माँगता है। सिक्ख क्या और सुख क्या?

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Sampooran Ishwariye Jyoti Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 5)

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