नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥

 


साध संगत जी, सिक्खी का ये कैसा स्वरूप है। ये कैसी सिक्खी है। 

मैं एक आप बीती सुना रहा हूँ जिसके कारण ये सारी चीजें मेरी समझ में आईं, मुझे बोध हुआ और इस प्रेम रस का मुझे पता लगा। 

जहाँ मैं इस समय खड़ा हूँ, यह वो कमरा है जहाँ पूज्य पिताजी श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन और पाठ का नित्य नेम पूरा करने के बाद आकर बैठा करते थे। कमलजीत सेवा कर रहा था, वह नाश्ता लेकरआया और नाश्ता रख दिया। हम भी आकर बाहर बैठ गए। मेरी दोनों बहनें बीबी भोलां और बीबी अजीत समेत संगत में पाँच और जन भी वहाँ बैठे थे।

जब नाश्ता आया तो नियम के अनुसार पिताजी ने हाथ जोड़कर बाबा नंद सिंह साहिब का ध्यान (चिंतन) किया।भक्ति भाव का ऐसा वैराग्य शुरु हुआ कि पिताजी की आँखों से अश्रु बहने शुरु हो गए। हम देख रहे हैं कि नाश्ता ठंडा हो गया है। आध-पौना घंटा व्यतीत हो गया, पिताजी विराग और ध्यान में डूबे हैं। हम सभी चुप करके उनकी इस अवस्था को देख रहे हैं। 

मेरी छोटी बहन भोलां रानी मुझसे धीरे से कहती है कि पिताजी के सारे वस्त्र अश्रुओं से भीग गए हैं।  परन्तु प्रताप, एक चीज़ तो देख ! उनके अश्रु तो नीचे को बह रहे हैं। पर उनकी तो दस्तार(पगड़ी) भी भीगी हुई है। ये देखकर मैं और बीबी अजीत दोनों हैरान हैं कि सिर पर बंधी दस्तार कैसे भीग गई।

जिस समय पिताजी विराग अवस्था से सचेत अवस्था में लौटे, फिर नाश्ता शुरु किया। इस समय बीबी अजीत और बीबी भोलां यह कहे बगैर नहीं रह सकीं कि पापा जी, आप अपने वस्त्र बदल लें।  यह सारे भीग गए हैं। पूछा कि पिताजी एक बात समझ नहीं आयी कि आप अश्रु तो नीचे की ओर बह रहे थे फिर आपकी ये दस्तार कैसे गीली हो गई? 

फिर पिताजी ने कहा- साध संगत जी, जिस समय हमने बाबा जी का ध्यान (चिंतन) किया तो बाबा नंद सिंह साहिब  प्रकट हो गए हैं। 

हमने नाश्ता उनके चरणों में प्रस्तुत किया और कहा कि सच्चे पातशाह! इस नाश्ते को ग्रहण कीजिए। इतना कहते ही हमारा मन उनके प्रेम वैराग्य में डूब गया, जैसे ही हमने बाबा जी के दर्शन किए तो अश्रुओं का प्रवाह फूट पड़ा। हमने उनके चरणों में गिरकर आँसू बहाने शुरु कर दिए।  

इस पर बाबा जी फरमाने लगे- पुत्र, हमारे विरह में अश्रु मत बहाओ। 

इससे ये सुनते ही विरह और बढ़ गया और अश्रु प्रवाह जारी रहा। ये सब कुछ हमारे वश में नहीं था जिस समय

विरह का प्रवाह बढ़ता जा रहा था तो 

बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया - पुत्र, तुम इन प्रेम के आँसुओं का मूल्य जानते हो? 

हम तो इस अश्रु प्रवाह से उनके चरण धोए  जा रहे थे।

फरमाया- पुत! तेरे ऐ वैराग दे दो हंजू सारे कलयुग दे पापां नूं धो सकदे हन। 

(पुत्र तुम्हारे ये विरह के दोआँसु तो कलियुग के समस्त पापों को धो सकते हैं।)

जिस समय बाबा नंद सिंह साहिब ने यह बात कही तो पिताजी ने कहा कि स्वयं बाबा नंद सिंह साहिब के नेत्रों से अमृतधारा बह चली। बाबा नंद सिंह साहिब का प्रेम वैराग्य तो हमारी तुलना में बहुत ज्यादा था। जिस वक्त उनका अश्रु प्रवाह शुरु हुआ तो हमारी दस्तार भीग गई, हमारे सारे कपड़े भीग गए। क्योंकि हम तो चरणों को स्नान करा रहे थे। पर साहिब के पवित्र अश्रु, वैराग्य के अश्रु हमारे ऊपर बरस रहे थे।

साध संगत जी, ये अहसास तो उस समय हुआ कि ये अश्रु क्या हैं? 

सवाल यह पैदा होता है कि प्रेम का शिखर क्या है?

  • यदि प्रेमी, प्रेम में सो नहीं सकता तो आप को लगता है कि प्यारा सो सकता है?
  • यदि प्रेमी तड़प रहा है तो क्या प्यारा नहीं तड़प रहा? 
  • यदि प्रेमी प्रेम रस का आस्वादन कर रहा है, तो जो स्वामी है, गुरु है, जो सतिगुरु है तो वह अपनी अथाह शक्ति से उस प्रेम रस का आस्वादन कर रहा होता है। 
  • वह तो स्वयं प्रेम के वश है जिसको भी प्रेम की सौगात बक्श देता है, स्वयं उसी के अधीन  हो जाता है। 
  • वह, प्रेमी के प्रेम-रस का आस्वादन हमसे बहुत ज़्यादा लेता है। 

साध संगत जी, यह एक अकथनीय कथा है इस अकथनीय कथा को, इस अमरगाथा को सर्वांश रूप से कोई नहीं कह सका।

प्रेम पराइण प्रीतम राउ ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 222


नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 579

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Sampooran Ishwariye Jyoti Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 5)

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