गुर पूरा निरवैर है निंदक दोखी बेमुख तारे॥
गुरु नानक दाता बख़्श लै, नानक दाता बख़्श लै।
बाबा नंद सिंह साहिब को एक संगी ने कहा- एक व्यक्ति आपकी बहुत निंदा करता है।
बाबा नंद साहिब ने फरमाया- वह तेरे से पहले ही तर जाएगा । (उसका उद्धार तेरे से पहले होगा।)
वह कहने लगा- मैं तो सारा दिन, आपकी सेवा करता हूँ और वह सारा दिन निंदा करता है फिर वह कैसे तरेगा?
वह पूछता है- इसकी वजह क्या है?
बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया -वह मुझे तुमसे ज्यादा याद करता है। वह हमारी निंदा इतनी अध्कि करता है कि वह हमें हर समय याद रखता है। हमें याद करने का लाभ तो उसे मिलेगा ही और निंदा करने में उसे कभी कष्ट नहीं होगा।
फिर उसने एक बात सुनाई, कहने लगा-
एक दिन गाँव की संगत बाबा जी के पास आई। पूरे गाँव की संगत थी और उनमें से कुछ लोग चारपाई पर एक
व्यक्ति को लिटा कर लाए थे।
आते ही उन लोगों ने कहा- चारपाई पर लेटा व्यक्ति न तो जीवित है और न मरे हुए व्यक्ति के समान है। इसका
परिवार चीखें मारकर रो रहा है। अब परिवार को समझ नहीं आ रहा है कि इस व्यक्ति का क्या करें? न तो यह
जीवित है और न ही मरता है।
उन्होंने बाबा जी से कहा- ये सदा आपकी निंदा करता था।
बाबा जी बड़े हैरान हुए और फरमाया- हमारी निंदा करने से किसी को कष्ट क्यों हो?
फिर उसके परिवार वाले कहने लगे- आप इस पर ऐसी बख्शिश करो कि ये मर जाए, क्योंकि यह बहुत तकलीफ में है।
बाबा जी ने फरमाया- नहीं जो आपकी शंका है वह दूर होनी चाहिए। जाओ इसे वापस ले जाओ।
वे कहने लगे- इसका करेंगे क्या?
बाबा जी ने फरमाया- आपकी शंका दूर हो जाएगी।
जिस वक्त वे अपने गाँव के निकट पहुँचे तो जो व्यक्ति चारपाई पर लेटा था वह व्यक्ति अचानक चारपाई
से कूदकर नीचे आ गया। ( बिलकुल स्वस्थ हो गया। )
बाबा जी ने फरमाया- आपकी शंका दूर हो जाएगी।
जिस वक्त वे अपने गाँव के निकट पहुँचे तो जो व्यक्ति चारपाई पर लेटा था वह व्यक्ति अचानक चारपाई
से कूदकर नीचे आ गया। ( बिलकुल स्वस्थ हो गया। )
गुर पूरा निरवैर है निंदक दोखी बेमुख तारे॥
भाई गुरुदास जी
सतिगुरु दाता दइआलु है जिस नो दइआ सदा होइ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 302
ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥ आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 272
ब्रह्मज्ञानी के रोम-रोम में गरीबी (दीनता) समाई रहती है। वह दुनिया में सबसे बड़े परोपकार करता है। पर करता है वह सबके चरणों की धूलि बनकर।
पहिला मरणु कबूलि जीवण की छडि आस ॥होहु सभना की रेणुका तउ आउ हमारै पासि ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग-1102
मरि मरि जीवै ता किछु पाए नानक नामु वखाणे ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 360
जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरीआ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 449
- कभी किसी को बुरा नहीं कहा।
- किसी के बारे में बुरा शब्द सुना भी नहीं।
पिताजी कहने लगे-
- कोई बर्फ को हाथ लगाता है उसका हाथ ठंडा हो जाता है।
- यदि आग को हाथ लगाएगा तो हाथ जल जाएगा।
- बाबा नंद सिंह साहिब को कोई याद भी करता है तो उसे शीतलता का आभास होता है। मतलब कि अगर निंदा भी करता है या याद करता है।
फिर बाबा नंद सिंह साहिब उस संगी को कहा-
वह तेरे से पहले तरेगा। (उसका उद्धार तेरे से पहले होगा।) सेवा तो आप सभी करते हो पर बदले में कुछ न कुछ माँगते हो। सेवा का पारिश्रमिक माँगते हैं। जो निदंक है, वह निंदा तो करता ही जाएगा पर वह माँगता कुछ नहीं।
बाबा नंद सिंह साहिब ने अपने साथ किसी को जोड़ा नहीं। जिन्होंने भी सत्कार में माथा टेका है, मजाल है कि उनका माथा (प्रणाम) कुछ देर के लिए ही अपने पास रखा हो। यदि अमृतसर साहिब से आई संगत ने माथा टेका है तो बाबा जी ने मुख से धनं गुरु रामदास जपते हुए दरबार साहिब का ध्यान करके उनका प्रणाम गुरु रामदास जी के चरणों में पहुँचा दिया। इस तरह जहाँ से भी कोई माथा टेकने के लिए आया, उसका माथा गुरु साहिब के चरणों में पहुँचा दिया। बाबा नंद सिंह साहिब ने कोई मान (महत्त्व) अपने ऊपर नहीं लिया।
गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।
(Sampooran Ishwariye Jyoti Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 5)
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