गुरु नानक दाता बख्श लै, बाबा नानक बख्श लै।


 मेरे सरताज बाबा नन्द सिंह साहिब ने एक पावन साखी सुनाई-

एक योगी को शंका के आधार पर बंदी बना लिया गया।  राजा ने उसे सूली की सज़ा सुनाई।  उस ने बहुत विचार किया कि मैंने तो ज़िंदगी-भर कोई पाप नहीं किया, फिर यह सूली की सज़ा मुझे क्यों मिली है ? ज़रूर मुझ से पिछले जन्म में कोई पाप हो गया होगा। 


यह विचार आते ही उसने अपनी योग शक्ति द्वारा अपने पिछले सौ जन्मों को देखा।  हैरानी की बात थी कि उसने पिछले सौ जन्मों में  से किसी भी जन्म में कोई पाप नहीं किया है।  वह पिछले सौ जन्मों में केवल भक्ति ही कर रहा है, योग कर रहा है, प्रभु-नाम की कमाई कर रहा है।  


योगी फिर सोच में पड़ गया कि जब मैंने पिछले सौ जन्मों में  कोई पाप ही नहीं किया है तो मुझे यह सूली की सज़ा क्यों मिली है ? 

उसने फिर अपने पिछले १०१ जन्म को अपनी योग शक्ति द्वारा देखा तो पाया कि- वह एक नौ साल का बालक है और एक बबूल के वृक्ष के नीचे बैठा है।  बबूल का एक शूल हाथ में लिए एक टिड्डे के साथ  खेल रहा है।  खेलते-खेलते उसने उस टिड्डे को शूल से भेद दिया।  यह दृश्य देखते ही उसे एकदम ज्ञान हुआ कि १०१ जन्म पहले किये हुए कर्म का हिसाब अभी शेष है।  उस हिसाब का कर्ज़ा अब इस सूली की सज़ा से  बराबर होगा, समाप्त होगा। यह सूली की सज़ा उस पाप की ही सज़ा है जो उसने १०१ जन्म पहले किया था।    


हज़ूर ने एक और इलाही वचन सुनाया -

 एक तपस्वी शिला पर बैठा भक्ति कर रहा है।  उस ने १०० साल कठिन तपस्या की। उस की  तपस्या से प्रसन्न हो कर निरंकार ने उसे दर्शन दिए और प्रसन्न हो कर पूछा -

 तूने १०० साल मेरी भक्ति की है, बता तुझे बख्शीश में क्या चाहिए ?

उसने हाथ जोड़ कर विनती की कि-

गरीब निवाज़, मैं १०० साल से इस शिला पर बैठा आप की भक्ति कर रहा हूँ, बहुत ही कठिन तपस्या की है।  गरीब निवाज़, मुझे बख्शीश नहीं बल्कि अपनी १०० साल की तपस्या का फल चाहिए।  

निरंकार ने पुनः फ़रमाया -

एक बार फिर से सोच लो, तुम्हें  इस १०० साल की कठिन तपस्या का फल चाहिए या बख्शीश?

तपस्वी ने फिर वही उत्तर दिया-

गरीब निवाज़, इस कठिन तपस्या का फल दे दीजिये।  

उसे हिसाब-किताब में फसा देख कर निरंकार ने फ़रमाया-

तेरा तो हिसाब ही बहुत है।  जिस शिला पर बैठ कर तूने १०० साल तपस्या की है, 

तुम इस शिला के  कर्ज़दार हो, देनदार हो।  क्योंकि इस ने १०० साल तेरा वज़न उठाया है।   

अब ऐसा करो कि तुम इस शिला को अपने शीश पर उठा लो और १०० साल तक उठाये रखो ताकि तुम्हारा हिसाब बराबर हो सके।  इस शिला का क़र्ज़ उतार दो।  जब तेरा यह क़र्ज़ उतर जाये, तब फिर से भक्ति कर के मुझे प्रसन्न करोगे, तब तुम्हे तुम्हारी भक्ति के हिसाब से उसका फल मिलेगा। 

यह सुनते ही तपस्वी एक दम चरणों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने लगा-  

गरीब निवाज़, मेरा हिसाब मत करो, मुझे फल नहीं चाहिए। गरीब निवाज़, मुझे बख्श दो।  

बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया कि-

        हमारी हिसाब से  नहीं  ख़त्म होगी, हमारी कमाई पर्याप्त नहीं है।  

        सिक्ख गुरु नानक के आगे, गले में पल्ला डाल कर, हाथ जोड़ कर

        एक ही प्रार्थना करे, विनती करे-

        हे गुरु नानक, सच्चे पातशाह, मेरा हिसाब ना  पूछना। 

     गरीब निवाज़, मेरे अवगुणों पर ध्यान ना  देना । 

   हे सच्चे पातशाह, मेरे बुरे कर्मों को ना देखना। 

     हे गरीब निवाज़, मुझे बख्श दो! 

     मुझे बख्श  दो ! मुझे बख्श  दो!


लेखै कतहि न छूटीअै, खिनु खिनु भूलनहार।


गुरु नानक दाता बख्श  लै, 

बाबा नानक बख्श लै। 



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