गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै।

गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै || एक बार छोटे ठाठ ( कुटीर) पर शाम के कीर्तन-दीवान का जिस समय भोग सम्पन्न हुआ तो बाबा नंद सिंह साहिब अपना आसन छोड़कर बाहर आ गए और तलाई के निकट पहुँचे। पिताजी ने उनका जोड़ा उनके चरण-कमलों के समक्ष कर दिया। जोड़ा ( चरण पादुकायें) चरणों में डालने के दौरान बाबा नंद सिंह साहिब ने अपना पवित्र हाथ पिताजी के कंधे पर रखा। जब वे जोड़े में अपने चरण डाल रहे थे तो इसी दौरान उनके चोले का एक बाजू खिसककर थोड़ा ऊपर हो गया और बाबा जी की पावन कलाई पिताजी के कान से छू गई। इस समय एक ऐसा अलौकिक चमत्कार हुआ। बाबा जी की कलाई के स्पर्श होते ही बाबा जी के रोम-रोम से ‘वाहेगुरु’ शब्द की ध्वनि गूँज रही थी , जो पिताजी के कानों द्वारा सीधी उनकी अन्तरात्मा में समा गई। गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै || वह ध्वनि जो रोम-रोम के भीतर से गूँजती है। वह दिव्य ध्वनि है। हम तो अपनी वाणी से ध्वनि का उच्चारण करते हैं , कीर्तन करते हैं। बाबा जी के रोम-रोम से जो पावन ध्वनि गूँज रही थी और वह भी किसी एक रोम कूप से नहीं , बल्कि शरीर के सभी रोम कूपों के भीतर से रही थी।...