‘गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै।’

 

गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै।



एक बार छोटे ठाठ (कुटीर) पर शाम के कीर्तन-दीवान का जिस समय भोग सम्पन्न हुआ तो बाबा नंद सिंह साहिब अपना आसन छोड़कर बाहर आ गए और तलाई के निकट पहुँचे। पिताजी ने उनका जोड़ा उनके चरण-कमलों के समक्ष कर दिया। जोड़ा (चरण पादुकायें) चरणों में डालने के दौरान बाबा नंद सिंह साहिब ने अपना पवित्र हाथ पिताजी के कंधे पर रखा। जब वे जोड़े में अपने चरण डाल रहे थे तो इसी दौरान उनके चोले का एक बाजू खिसककर थोड़ा ऊपर हो गया और बाबा जी की पावन कलाई पिताजी के कान से छू गई। इस समय एक ऐसा अलौकिक चमत्कार हुआ। बाबा जी की कलाई के स्पर्श होते ही बाबा जी के रोम-रोम से ‘वाहेगुरु’ शब्द की ध्वनि गूँज रही थी, जो पिताजी के कानों द्वारा सीधी उनकी अन्तरात्मा में समा गई। 

गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै। 

वह ध्वनि जो रोम-रोम के भीतर से गूँजती है। वह दिव्य ध्वनि है। हम तो अपनी वाणी से ध्वनि का उच्चारण करते हैं, कीर्तन करते हैं। बाबा जी के रोम-रोम से जो पावन ध्वनि गूँज रही थी और वह भी किसी एक रोम कूप से नहीं, बल्कि शरीर के सभी रोम कूपों के भीतर से गूँजती... 

फलगुणि नित सलाहीऐ जिस नो तिलु न तमाइ।।

...हुई, जब पिताजी के कानों में गई है तो पिताजी के अनुसार-

 मेरी तो सुध-बुध जाती रही। उस समय होश ही नहीं रहा। मुझे उस समय जिस नशे और सरूर का अनुभव हुआ उसका यथार्थ वर्णन करना असंभव है। हाँ, जो कुछ अनुभव हुआ वह यह कि मेरे सारे शरीर में कंपन होने लगा, पैर डगमगाने लगे और मैं गिरने को हुआ कि बाबा नंद सिंह साहिब ने पहले से ही स्पर्शित अपने पावन हाथ से मेरे कंधे को दृढ़ता से पकड़ लिया और कहा, पुत्रा! अपने आप को संभाल और फिर उन्होंने ही मुझे स्वयं संभाला। फिर तो मदहोशी की यह स्थिति हुई कि एक ही ध्वनि हृदय में गूँज रही थी, वही ध्वनि जिसको मैंने बाबा नंद सिंह साहिब के कलाई-स्पर्श के माध्यम से सुना था। 

साधसंगत जीफिर वह मदहोशी का असर पिताजी पर देखा है, उसका तो कहना ही क्या? पर एक चीज़ मैं इस समय ज़रूर स्पष्ट करना चाहता हूँ। वह है पिताजी द्वारा उस समय समझाई गई बात। उन्होंने उस समय मुझसे कहा-

पुत्रा ! क्या तुम इस सबका अर्थ समझते हो?

बाबा नंद सिंह साहिब के शरीर के सात करोड़ रोमकूपों के भीतर से ‘वाहेगुरु’ शब्द का जो जाप हो रहा है और साथ ही उनकी वाणी से भी उसी समय से ‘वाहेगुरु’ का जाप चल रहा है, तो सात करोड़ वाहेगुरु’ शब्द की समवेत ध्वनि रोम-रोम से गूँज रही है।

यदि वे ‘जपुजी साहिब’ का एक बार पाठ करते हैं तो उनके शरीर के सात करोड़ रोमकूपों से सात करोड़ जपुजी साहिब’ का पाठ स्वयं ही हो जाता है। यदि ‘सुखमनी साहिब’ का पाठ करते हैं तो सात करोड़ ‘सुखमनी साहिब’ के पाठ हो जाते हैं।

यदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का एक पाठ करते हैं तो सात करोड़ की संख्या में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के पाठ हो जाते हैं। 

यदि बाबा जी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का एक सम्पट पाठ करते हैं तो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के सात करोड़ सम्पट पाठ हो जाते हैं।’

धनं धनं बाबा नन्द सिंह साहिब 

बाबा नन्द सिंह जी तूं  कमाल ही कमाल हैं। 

बाबा नन्द  सिंह जेहा ऋषि न कोई होया न कोई होसी।   

गुरु नानक दाता बख्श  लै, 

बाबा नानक बख्श लै।


 

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