सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार॥

सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार॥ 



अपनी सोच में नहीं, बल्कि गुरु की सोच में, इसे समझाते हुए पूज्य पिताजी ने एक साक्षी उपस्थित की- 

पिताजी फरमाने लगे कि-

गुरु नानक पातशाह अंदर कक्ष में विराजमान हैं, संगत बैठी है और दिन का समय है। 

वे फरमा रहे हैं कि रात है। 

उन्होंने संगत की ओर देखा तो संगत ने कहा- सच्चे पातशाह! दिन है। 

उन्होंने फिर फरमाया- रात है। 

संगत ने फिर कहा- सच्चे पातशाह! दिन है। 

लहणा जी की ओर देखकर कहा कि- लहणा जी बाहर देखकर आओ कि रात है। 

गुरु अंगद साहब (भाई लहणा जी) बाहर तशरीफ ले गए, देखा कि दिन है। अंदर आकर, हाथ जोड़कर शीश झुकाया और चरणों में बैठकर कहने लगे- सच्चे पातशाह, रात है। 

संगत देख रही है कि गुरु अगंद साहिब, दिन को रात कह रहे हैं। पर, गुरु अगंद साहिब अपनी सारी सोच छोड़ बैठे हैं, गुरु अंगद साहिब की सारी सोच गुरु नानक पातशाह की सोच में समा चुकी है। यदि गुरु नानक पातशाह दिन को रात कह रहे हैं तो गुरु अगंद साहिब भी दिन को रात ही कह रहे हैं। 

साध संगत जी! पिताजी कहने लगे- जो इस मृत्युलोक की रात है उसे गुरु अंगद साहिब अपनी ही बाणी में किस तरह स्पष्ट करते हैं- 

जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार॥ 

एते चानण होदिआं गुर बिनु घोर अंधार

(श्री गुरु अंगद देव जी )

एक सूर्य की तो क्या,  ऐसे हजारों सूर्य भी उदित हो जाएँ तो यह जो अज्ञान का अंधकार है, अज्ञान की रात है, वे हजारों सूरज उसको एक मोमबत्ती सरीखा प्रकाश भी नहीं दे सकते। 

साध संगत जी! जो माया की रात है जिससे मृत्युलोक  घिरा हुआ है, उसे चाँद और सूर्य नहीं हटा सकते, उस अन्धेरे को तो सतिगुरु को छोड़कर कोई भी दूर नहीं कर सकता। फिर पिताजी कहने लगे- 

सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार

पिताजी ने दो-चार वचन ऐसे किए....और कहने लगे-

देखो पुत्रअपनी सोच में दो चीज़ें  बिल्कुल नहीं हो सकती। अपनी सोच में सतिगुरु से प्यार नहीं हो सकता, निरंकार से प्यार नहीं हो सकता। 

फिर कहने लगे कि- 

अपनी सोच में कुर्बानी  नहीं दी जा सकती। 

यदि अपनी सोच है तो कुर्बानी देना संभव नहीं है, जब तक गुरु की सोच में नहीं आता तब तक संसार की सारी चिन्ताएँ चिपटी रहेंगी। उसका काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पीछा नहीं छोड़ते। जिस समय वह गुरु की सोच में आ जाता है, उसी क्षण से उसकी सारी सोच और फ़िक्र गुरु का हो जाता है। 

इसलिए पुत्र! गुरु की सोच में आ जाओ, बाबेआँ ; बाबा नंद सिंह साहिब की सोच में आ जाओ। 

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Nanak Leela, Part 1)

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