जिस सिक्ख ने अमृत छका है, अमृतधारी है, वह मर्यादा में रहता है और गुरु परायण है, उस सिक्ख की पदवी क्या है?
देवता, सुर, नर, मुनि-जन, सब इस पदवी की कामना करते हैं पर उस तक पहुँच नहीं सकते।
(जिस सिक्ख ने अम्रित छक्या है, अमृतधारी है, रहिणी विच रहंदा है, गुरु पराइण है, उस सिक्ख दी पदवी की है?
बाबा जी फ़रमाने लगे- जिस समय सिक्खों पर मुसीबतों के पहाड़ टूटने लगे, सिक्खों के सिरों का मोल लगना शुरू हो गया, तब सिक्खों को जंगलों में छुपकर वक्त काटना पड़ा। उन्हें अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए गाँव में जाना पड़ता था। कई बार ऐसे अवसर भी आए कि उन्हें पकड़ने के लिए वहाँ छापे डाले गए। गाँव वाले अमृतधारी सिक्ख के आचरण का बहुत मान करते थे। जब छापे पड़े तो ऐसा अवसर भी आया कि गाँव वालों ने सिक्खों को अपनी बेटियों के साथ सुला दिया और यह कहा कि हमारा दामाद सोया हुआ है।
ऐसा अमृतधारी सिक्ख, जो आचरण में पूरा है, गुरु परायण है और जिसकी वृत्ति गुरु के चरणों में है, सपने में भी ऐसे सिक्ख के मन पर लेशमात्र भी काम-वासना-का प्रभाव नहीं हो सकता।
उसकी, जिसने गुरु गोबिंद सिंह साहिब के द्वारा बख़्शीश किया हुआ अमृत पिया है,
सेवन किया है।
आपने गृहस्थ मार्ग अपनाना है, राजयोग करना है। गृहस्थ मार्ग पर चलते हुए सेवा करनी है।’ पर इससे आगे जो कुछ उन्होंने कहा वह यह कि जो ‘त्याग है, जो कुर्बानी (बलिदान) है, प्रेम है इसकी परीक्षा (परचा) केवल साधुओं, दरवेशों और फ़कीरों के लिए ही नहीं है,बल्कि इसकी परीक्षा (परचा) तो गृहस्थियों को भी देनी पड़ती है। ऐसे अवसर तो गृहस्थी के जीवन में भी आते हैं।
जिस समय त्याग, कुर्बानी और प्रेम के परख (परीक्षा) का अवसर आ जाए, उस समय गुरु साहिबान के द्वारा आचरित मानकों (पूरनों) को याद कर लेना। गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने तो अपना सर्वस्व (सरबंस) कुर्बान कर दिया, न्योछावर कर दिया उस समय प्रेम, त्याग और कुर्बानी (बलिदान) देने में पीछे नहीं हटना।
(तुसी गृहस्थ मार्ग अपनाउणां है, तुसी राजयोग करणा है,गृहस्थ मार्ग विच रहंदे होए सेवा करणी है
पर अग्गे जो केहा उह एह है के-
अमृतधारी सिक्ख की, मर्यादा वाले सिक्ख की अवस्था बतला रहे हैं, और साथ में दशमेश पिताजी द्वारा बख़्शी हुई उस दात की अवस्था भी बतला रहे हैं जो त्याग, कुर्बानी और प्रेम के बिना नहीं मिल सकती।
साधसंगत जी!
जिसको भी वास्तविक प्रेम होगा (स्वार्थी प्रेम नहीं, अपने मतलब का प्रेम नहीं), जिसको भी ऊँचा और पवित्र (सुच्चा) प्रेम होगा वही सतिगुरु पर कुर्बान हो सकता है। वे प्रेम की दूसरी रूपरेखा बताते हैं और वह है कुर्बानी। वही प्यारे कुर्बान हुए हैं जो सतिगुरु परायण थे। जो सतिगुरु की प्रीति में कुर्बान हुए वही उनके सच्चे आशिक थे।ऐसे प्यारों ने ही कुर्बानी दी।
जउ तउ प्रेम खेलण का चाउ।।सिरु धरि तली गली मेरी आउ।।इतु मारगि पैरु धरीजै।।सिरु दीजै काणि न कीजै।।
गगन दमामा बाजियो परओि नीसानै घाउ।।खेतु जु मांडियो सूरमा अब जूझन को दाउ।।सूरा सो पहिचानीऐ जु लरे दीन के हेत।।पुरजा पुरजा कटि मरै कबहू न छाडै खेतु।।
गुरु नानक दाता बख्श लै,
बाबा नानक बख्श लै।