गुरु गोबिंद सिंह साहिब की विलक्षण विनम्रता
साधसंगत जी, गुरु गोबिंद सिंह साहिब किस तरह की विलक्षण विनम्रता दिखा रहे हैं?
गुरु गोबिंद सिंह साहिब, सच्चे पातशाह जिसको सज्जित कर रहे हैं उसके बारे में कह दिया है-
इन ही की किरपा के सजे हम हैं नहीं मो सो गरीब करोर परे।
यह किस तरह की विनम्रता है?
जिसे कभी किसी पैगम्बर ने सजाया (सज्जित किया) है, वही स्वयं कह रहा है-
मैंने इनको क्या सजाना, यह तो इन्होंने ही मुझे सज्जित किया (सजाया) है।
साहिब, सच्चे पातशाह अपनी बाणी को श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित नहीं करते। दशमेश पिता अपनी बाणी को इसलिए नहीं अंकित कर रहे कि वे गुरु नानक के साथ अपनी तुलना नहीं करते हैं।
यहाँ तक कहा जाता है कि ‘हजूर साहिब’ में सच्चे पातशाह ने आखिरी खेल को चरितार्थ करते समय यह वचन कर दिया कि जो भी हमारी यहाँ निशानी बनाएगा उसके कुल का नाश हो जाएगा।
यह संदेश जिस समय निजाम हैदराबाद ने अपने मित्र महाराजा रणजीत सिंह के पास भिजवाया तो उस समय दरबार में उठकर महाराजा रणजीत सिंह ने यह घोषणा करते हुए कहा-
एक कुल तो क्या ऐसे गुरु के वास्ते सैकड़ों कुल कुरबान।
(इक कुल की, ऐसे गुरु वास्ते सैकड़ां कुलां कुरबान।)
उन्होंने अपनी ओर से अहलकार और मिस्त्री सब कुछ भेजा, बहुत-सा पैसा भेजकर सेवा करवायी और गुरु साहब का ‘निशान’ तैयार करवाया।
साधसंगत जी, किस तरह की गरीबी बरत रहे हैं?
पिताजी ने एक दिन बताया कि गुरु ग्रंथ साहिब आखिर क्या है? गुरु बाणी के ‘शबद’ आखिर क्या कह रहे हैं?
वे कहने लगे कि-
वे कहने लगे कि-
गुरु ग्रंथ साहिब एक इलाही चक्की है जिसमें ‘मैं’ पीसी जाती है, हउमै (अहम्) पीसी जाती है। हरेक शबद का सार बस यही निकलता है ‘तूँ’, ‘गुरु नानक तूँ’, ‘मैं नहीं तूँ’, ‘मैं नहीं केवल तूँ’।
यहाँ ‘मैं’ किधर से आ गई? ऐसा कभी क्या हो सकता है कि गुरु नानक, गुरु अर्जुन साहिब, गुरु गोबिंद सिंह साहिब व श्री गुरु ग्रंथ साहिब का सिक्ख खालसा, जिसका गुरु नम्रता का अवतार था, नम्रता का पैगम्बर था वह सिक्ख कभी अंहकार में ग्रस्त हो जाए?
कभी अहंकार में आए हुए सिक्ख में गुरुबाणी प्रवेश कर सकती है?
साधसंगत जी, बाबा नंद सिंह साहिब ने फ़रमाया-
जिस तरह बरसात टीलों और पहाड़ों पर नहीं रुकती (टिकती), जाकर नीचे गड्ढ़ों में भर जाती है, इसी प्रकार यह नाम, यह बक्शीश अहंकार ग्रस्त के पास नहीं टिक सकती, उसके मन में नहीं बस सकती। वह तो नम्रता में भीगे हुए मनुष्य के हृदय में जा समाती है।
(जिस तरह बारिश टिबिआं ते पहाड़ां ते नहीं टिकदी, जाके टोयां विच समा जांदी है, इसे तरह इह नाम, इह बख़्शीश हंकारे होए दे कोल नहीं टिक सकदी, उदे मन दे विच नहीं बस सकदी। उह निमरता दे भिज्जे होए व्यक्ति दे विच जा समांदी है।)
साधसंगत जी, गुरु अर्जुन साहिब का सिक्ख, गुरु गोबिंद साहिब का सिक्ख, गुरु गोबिंद साहिब का खालसा क्या कभी अहंकारी हो सकता है?
गुरु नानक दाता बख्श लै,
बाबा नानक बख्श लै।
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