श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥
बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया -
निर्गुण की शक्ति सब जगह कार्यरत है।
परन्तु जब भी कोई काम करती है, सरगुन का स्वरूप धारण कर लेती है।
पिता जी ने इसे समझाते हुए फ़रमाया -
निरंकार प्रकाश ही प्रकाश है। उस परम ज्योति का कोई नाम और स्वरुप नहीं है। परन्तु सरगुण का नाम और स्वरुप है। इसलिए जब भी वह शक्ति, वह प्रकाश इस जगत में किसी कार्य हेतु, किसी मिशन हेतु आता है तो नाम और स्वरुप धारण कर लेता है। और अपना मिशन सम्पूर्ण होने पर फिर उसी प्रकाश में समा जाता है। अब फिर उसका कोई नाम और स्वरुप नहीं है। वह पुनः मात्र प्रकाश ही प्रकाश है।
आठवें पातशाह साहिब श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब इस जगत में अवतरित हुए।
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु
वह जब भी इस धरती पर अवतरित होता है-
- नया ही खेल खेलता है।
- नई दातों से निवाज़ता है।
- नई लीला रचता है।
साहिब नाम और स्वरुप ले कर अवतरित हुए हैं। पांच वर्ष छह माह की आयु में गुरु नानक पातशाह की गद्दी पर विराजमान होते हैं।
सच्चे-पातशाह एक प्रेम लीला रच देते हैं। ....
वह जब भी नाम और स्वरुप ले कर अवतरित होता है तो एक प्रेम-लीला रचता है, जो इस जगत के लिए उदाहरण बन जाती है, एक प्रकाशमयी आधार बन जाती है। इस जगत के लिए अमृतमयी प्रेरणा बन जाती है। साध-संगत जी, फिर वही प्रेम-लीला जगत को जीवन प्रदान करती है।
जउ मै अपुना सतिगुरु धिआइआ ॥
तब मेरै मनि महा सुखु पाइआ ॥१॥
मिटि गई गणत बिनासिउ संसा ॥
नामि रते जन भए भगवंता ॥१॥
जउ मै अपुना साहिबु चीति ॥
तउ भउ मिटिओ मेरे मीत ॥२॥
जउ मै ओट गही प्रभ तेरी ॥
तां पूरन होई मनसा मेरी ॥३॥
देखि चलित मनि भए दिलासा ॥
नानक दास तेरा भरवासा ॥
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 390
(www.SikhVideos.org)
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