गुरु हरिकृष्ण साहिब और कुष्ट-रोगी पर कृपा

 



श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब पांच वर्ष की आयु में गुरु नानक पातशाह की गद्दी पर विराजमान होते हैं। संगत हर्षोल्लास से दर्शन कर रहीं हैं।  

साहिब एक दिन पालकी में जा रहे थे।  रास्ते में एक कुष्ट रोगी रास्ता रोक कर चीख-पुकार कर रहा है। 

उस की चीख पुकार है क्या? वह क्या सोच रहा है ?

गुरु नानक पातशाह जब दीपालपुर गए थे तो उन्होंने एक कुष्ट-रोगी पर अपनी अमृत-दृष्टि डाली और उसे स्वस्थ कर दिया था, नाम से महका दिया था। उस को देख कर सारा दीपालपुर गुरु नानक पातशाह के चरण-कमलों में नतमस्तक हो गया है।
  
प्रेमा कोहड़ी जिसे सारी  दुनिया ने धिक्कार दिया है।  सभी पास से नाक बंद कर के गुज़र जाते हैं।  यदि किसी को दया आती भी है तो परशादा (भोजन ) उस के आगे फैंक जाता है वर्ना सभी दूर से ही निकल जाते हैं।  
एक दिन  गोइन्दवाल साहिब जा रही संगत  उस रास्ते से निकली।

संगत तीसरे पातशाह साहिब श्री गुरु अमरदास जी की स्तुति (महिमा) गा रही थी-
निमानणेआं दे माण 
नितानणेआं दे ताण
निपत्तेआं दी पत्त 
निगत्तेआं दी गत 
निओटेआं  दी ओट
निआसरेआं दे आसरे ...  
 
वह कुष्ट रोगी दूर बैठा यह सब सुन रहा है। उस के मन में आशा की एक किरण जागी। संगत के पीछे पीछे लुढ़कता हुआ वह भी गोइन्दवाल साहिब पहुँच गया।  जब साहिब के चरणों में पेश हुआ तो ज़ोर-ज़ोर से रोने लग पड़ा। 
साहिब के आगे क्या  विनती थी उसकी?

सच्चे-पातशाह,  सब ने मुझे  धिक्कार दिया है,  बाहर फेंक दिया है। मेरी वास्तव में कोई इज़्ज़त नहीं है, कोई गति नहीं है।  मेरा कोई मान नहीं है।  मेरा कोई ताण नहीं है।   
सच्चे-पातशाह, तेरे सिवा  मेरा कोई आसरा नहीं है। 

ऐसी विनती करते हुए वह रो रहा है। 

गुरु अमरदास जी की सच्चे-पातशाह की अमृत दृष्टि उस पर पड़ रही है।  उस अमृत दृष्टि का प्रभाव उसे तब पता चला जब वह स्वस्थ हो कर एक खूबसूरत नौजवान बन गया।

अब यह कुष्ट-रोगी यह सोच रहा है कि प्रेमा कोहड़ी पर सतिगुरु गुरु अमरदास जी ने ऐसी कृपा की गोइन्दवाल साहिब में की और गुरु नानक ने दीपालपुर में। 
  
हे आठवें गुरु नानक !!! इस गरीब पर भी दया करो , इस कोहड़ी को भी बख्श दो।

 ऐसी विनती कर रहा है। 

गुरु हरिकृष्ण साहिब ने अपनी पालकी रुकवाई ।  उस कुष्ट-रोगी पर अपनी अमृत-दृष्टि डाली।  दया-स्वरुप साहिब के हाथ में एक रुमाल था। वह रुमाल उस कुष्ट-रोगी को थमा दिया। 

फ़रमाया - ले इसे अपने चेहरे और शरीर पर मल ले। 

जैसे-जैसे वह रुमाल से अपने शरीर को रगड़ रहा है, स्वस्थ होता जा रहा है।  उसके सब दुख और कष्ट दूर हो गए।
 
श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥

सारी संगत देख रही है। 

साध-संगत जी, उस संगत के साथ सारी दरगाह भी देख रही है कि आठवां गुरु नानक पांच वर्ष की आयु में कैसी  लीला रच रहा है। उस समय सारी दरगाह, यह सारी कायनात, सारी प्रकृति, सारी खुदायी...... ।  सब का कण-कण गुरु हरिकृष्ण साहिब की जय-जयकार कर रहा है - 

श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥

गुरु नानक दाता बख्श लै।

बाबा नानक बख्श लै॥




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