जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै


 


साहिब  श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब पंजोखड़ा साहिब अम्बाला से दिल्ली की ओर रवाना हुए।  रास्ते में बहुत लीलायें हुई। 

दिल्ली में राजा जय सिंह के घर निवास किया।  राजा जय सिंह और उनकी धर्मपत्नी रानी माता ने साहिब का स्नेह पूर्वक बहुत सेवा-सत्कार किया। वहाँ बहुत लीलायें हुई। 

परन्तु दिल्ली में एक दुखद घटना हुई।  वहां एक जानलेवा बिमारी फैल गयी।  लोग मरना शुरू हो गए।  पूरी दिल्ली में हाहाकार मच गई। 

किसी बुद्धिमान ने सब  सलाह दी कि - 
भले लोगो, आठवां गुरु नानक दिल्ली में पधारे हैं। राजा जय सिंह के महल में उनके अतिथि स्वरूप ठहरे हैं। चलो, चल कर उनके पास इस कष्ट से मुक्ति पाने की विनती करते हैं।   
यह सुन कर सब श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब के मिलने के लिए चल पड़े। 

श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥

जिस ने भी साहिब के दर्शन किए उस का कष्ट दूर हो गया।
  
साध-संगत जी फिर क्या था, सारी दिल्ली ही साहिब के चरणों में उमड़ पड़ी।  कोई मरणासन बच्चों को गोद में उठा कर ला रहा है तो कोई वृद्धजनो को चारपाई पर उठाए आ रहा है।

जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इहु बिरदु सुआमी संदा॥
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग-544
जो भी गुरु नानक की शरण में आ जाता है...।

गरीब, दुखी जो कोई भी साहिब की शरण में आ रहा है, साहिब सब को दुखों से निवृत कर रहे हैं। सभी साहिब के दर्शन पाकर तृप्त हो रहे हैं। 

जब भी उस का प्रकाश आता है वह आ कर प्रकाश ही बांटता है, प्रकाश की ही वर्षा करता है। 
 
यह प्रसंग सुनाते हुए  पिता जी कहने लगे -
उस के तीन स्वरुप हैं।  जब भी परमात्मा स्वरुप धारण  करके अवतरित होता है, 
क्योंकि वह प्रकाश-स्वरुप है इसलिए आ कर प्रकाश ही बांटता है।
वह प्रेम ही प्रेम है और प्रेम ही बांटता है।  
वह दया-स्वरुप है...

सतिगुरु दईआ निधि महिमा अगाध बोध॥

नमो नमो नमो नमो नेत नेत नेत है॥ 

भाई गुरदास जी 

 वह दया का सागर है।  दया का समुन्द्र है और दया की वर्षा करता है। 

फिर पिता जी कहने लगे कि एक बार बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया -

जब वर्षा होती है तो वह सब पर एक समान बरसती है। 

और जब गुरु कृपा करता है वह भी....  

उस का भी यही स्वभाव है। सब को समान कृपा-दृष्टि से देखता है। 

फिर पिता जी एक और बात बताई। कहने लगे -

यह सूरज तो उस का बनाया हुआ है उसकी आज्ञा में है, उस के भय में है। 

कहने लगे -

सूरज सब को एक समान सुख देता है।  उस की रोशनी सब के लिए है।  यह बांटी नहीं जा सकती है और न ही यह किसी को बांटती है।

 कहने लगे - 

अब अल्लाह का नूर आया है... , जितने भी  मुस्लिम आए उन्हें भी उसी दया से निवाज़ रहे हैं जिस दया और प्रेम से ईसाईयों को। 

वह प्रेम-स्वरुप उन का  प्रभु उन पर उसी प्रेम की बख्शिश कर रहा है। 

यदि कोई हिन्दू आ रहा है तो उन का भगवान् उन पर भी उसी प्रकाश की वर्षा कर रहा है, क्योंकि वह सब का साझा है। 

  • गुरु नानक निरंकार सब का साझा है। 
  • उस का प्रकाश भी साझा है।  
  • उस का प्रेम भी साझा है। 
  • उस की  दया भी साझी  हैऔर 
  • वह सब पर समान रूप से पड़ रही है।


साध-संगत जी, कमाल हो गई।  

मेरे साहिब ने सारी दिल्ली को आनंद से भर दिया। सारी दिल्ली अश-अशकर उठी।अब सारी दिल्ली गा रही है -

  श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥

   साहिब का कंठ लगाने का तरीका देखो

जो भी उनकी शरण में आ रहा है उनको किस तरह अपने कंठ से लगा रहे है ?

साहिब शरण में आए सब के दुख अपने गले लगा रहे हैं।  

सब का दुख अपने ऊपर ले कर उसका भुगतान कर रहे हैं।  

दया-स्वरुप आठवें गुरु नानक किस तरह उन सब को अपने कंठ लगा रहे हैं !!!

फ़रमाया- 

जी आयाँ नूं।  आप गुरु नानक की शरण में आए हैं। आपका स्वागत है। 

         अपने सारे दुख गुरु नानक को दे दो। 


बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया -

जिस गरीब का कोई नहीं उसका गुरु नानक है।  

कुष्ट रोगी, प्रेमा कोहड़ी का दुनिया में कोई नहीं था, परन्तु जिस समय वह तीसरे गुरु नानक गुरु अमर दास जी की शरण में आया तो तीसरे गुरु नानक की दृष्टि मात्र ने उस को सारे दुखों से निवृत कर दिया। 

गुरु नानक दाता बख्श लै

बाबा नानक बख्श लै


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