पिंगुल परबत पारि परे खल चतुर बकीता ॥

श्री हरिकृष्ण धिआईऐ 


राजा जय सिंह का निमंत्रण पर साहिब  श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब ने दिल्ली जाने की त्यारी शुरू कर दी। दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  

रास्ते में लीला रच रहें हैं। रास्ते में जहां भी पड़ाव करते हैं, भक्ति-भाव से पूर्ण संगत बहुगिणती  में दर्शन के लिए पहुंचती है। 

अम्बाला शहर के पास पंजोखड़ा साहिब, यहां उनकी याद में एक गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है।  वहां एक  बहुत बड़े विद्वान पंडित लाल चंद थे।  शहर में उनकी बहुत ख्याति थी और बहुत से शिष्य भी।  अपने शिष्यों से अपनी शंका प्रकट करते हैं कि  - एक छोटा सा बच्चा, जो आठवां गुरु नानक  है और उन्होंने अपना नाम "हरिकृष्ण" भी  भगवान् श्री कृष्ण के नाम पर रखा है। 

पंडित जी भगवद गीता के उत्तम कोटि के विद्वान् थे।  मन में विचार आया कि मैं उनसे भगवद गीता के श्लोकों का अर्थ पूछूँगा।  यदि ठीक उत्तर देते हैं तो वास्तव में गुरु नानक की गद्दी  पर विराजमान हैं।  वैसा ही सामर्थ्य रखते हैं। 

इस मंशा से अपने शिष्यों के साथ साहिब के दर्शनों के लिए गए।  पंडित जी वहां बैठे हैं।  

जिस समय श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब ने उस ओर देखा और पूछा कि- पंडित जी कैसे आना हुआ ?

पंडित जी ने एकदम निधड़क हो कर कहा - गरीब निवाज, भगवद गीता के कुछ श्लोकों के अर्थ समझने आया था। 

गुरु साहिब ने फ़रमाया - पंडित जी, कुछ ओर चीज़ पूछो, कुछ ओर चीज़ मांगो। 

श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब - यह तो कोई और भी समझा देगा। कुछ ओर मांगो।

साहिब ने जब यह कहा कि कोई और भी समझा देगा। 

पंडित जी - .... ?

श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब - हाँ, किसी को भी ले आओ । 

पंडित जी ने यह सुनते ही पीछे देखा। 

संगत में छज्जू नाम का एक झिऊर, जो गूंगा और बहरा था, काम कर  रहा था। 

यह जानते हुए भी कि छज्जू गूंगा-बहरा है।  पंडित जी ने उसे साहिब के समक्ष खड़ा कर दिया। 

घट-घट के जाननहार, अंतर्यामी आठवें पातशाह श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब ने मुस्कुरा कर उस की ओर देखा और छज्जू को बैठने का संकेत किया।  छज्जू  साहिब की आज्ञानुसार बैठ गया।  

साहिब पंडित जी से कहने लगे - पूछो, भगवद गीता के कौन से श्लोकों का अर्थ पूछना है।  

पंडित जी ने बड़ी शान से श्लोक पढ़ा। 

साहिब ने छज्जू पर अपनी अमृत-दृष्टि डाली, अपनी छोटी सी छड़ी से उस के शीश को छुआ । 

छज्जू  श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब के दर्शन कर रहा है।  

अब सभी सोच रहे थे कि यह गूंगा बोलेगा कैसे? बहरा सुनेगा कैसे ?

परन्तु जब साहिब ने छज्जू पर कृपा की है.. . .  ।

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु अर्जुन पातशाह क्या फरमाते हैं - 


पिंगुल परबत पारि परे खल चतुर बकीता ॥

अंधुले त्रिभवण सूझिआ गुर भेटि पुनीता ॥१॥

महिमा साधू संग की सुनहु मेरे मीता ॥

मैलु खोई कोटि अघ हरे निरमल भए चीता ॥१॥ रहाउ ॥

ऐसी भगति गोविंद की कीटि हसती जीता ॥

जो जो कीनो आपनो तिसु अभै दानु दीता ॥२॥

सिंघु बिलाई होइ गइओ त्रिणु मेरु दिखीता ॥

स्रमु करते दम आढ कउ ते गनी धनीता ॥३॥

कवन वडाई कहि सकउ बेअंत गुनीता ॥

करि किरपा मोहि नामु देहु नानक दर सरीता ॥४॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 809

 पिंगुल परबत पारि परे - जिस समय वह अमृत-दृष्टि डालता है, उस समय एक अपाहिज, लंगड़ा भी पहाड़  चढ़ जाता है 

खल चतुर बकीता - चतुर बकीता का अर्थ है - चार वेदों का वक्ता

गुरु का सामर्थ्य ऐसा है कि जिस पर भी कृपा कर दे, अपनी अमृत-दृष्टि डाल दे, उस अनपढ़,मूर्ख को चारों वेदों का वक्ता बना देता है।    

अंधुले त्रिभवण सूझिआ गुर भेटि पुनीता॥- अंधे को तीनों लोकों का दर्शन करा देता है। 

साहिब की कृपा दृष्टि से आलोकिक ज्ञान के द्वार खुल गए ।  दरगाही बख्शिश से वशिभूष छज्जू ने  पंडित जी को उन श्लोकों के अर्थ जिस गहरायी से समझाये उसे सुन कर पंडित जी निरुत्तर हो गये। क्योंकि उस गहरायी तक तो पंडित जी की भी पहुंच नहीं थी।  यह लीला देख कर सारी संगत  हैरान रह गई।   

आठवें गुरु नानक किस मौज में बैठे हैं।  गुरु नानक की हर मौज ही एक लीला है। 

यह कैसा रहस्य है ?

बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया -

गुरु नानक के घर मान खड़ा नहीं हो सकता, मान ठहर नहीं सकता। 

पंडित जी की विद्या का अहंकार चूर-चूर हो गया। पंडित जी के अंदर निम्रता प्रवेश कर गयी और वह आठवें गुरु नानक के चरण-कमलों पर गिर पड़े।   
साध-संगत जी, यह है गुरु नानक के दर्शनों का फल !

बाबा नन्द सिंह साहिब संगत में फरमाते थे -
हम आप को कुछ भी त्यागने के लिए नहीं कहते।  आप जो भी चौबीस घंटों में करते हो, करते रहो। 
पर गुरु नानक की बाणी, गुरु नानक का नाम, गुरु के दर्शन, इन को भी साथ ले लो।
यह पारस है।  आपकी ज़िंदगी को सोना बना देगा। 

 

पंडित जी ने आठवें गुरु नानक के दर्शन किये, थोड़े समय के लिए उनकी संगत की।  परन्तु उसका प्रभाव ऐसा हुआ कि निम्रता और गरीबी को अपनाते ही उनकी ज़िंदगी बदल गई। 

 साहिब के दर्शन-मात्र से जिस झिऊर के सारे कष्ट समाप्त हुए, वह पढ़ रहा है -
श्री हरिकृष्ण धिआईऐ जिस डिठे सभ दुख जाइ।
 
(Book -Nanak Leela, Part 2 )
(www.SikhVideos.org)

गुरु नानक दाता बख्श लै,

बाबा नानक बख्श लै।

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