निरंकार के मृत्यु-लोक में अवतरित होने का कारण
बाबा नन्द सिंह साहिब ने क्या फ़रमाया?
उस के इस संसार में नाम और स्वरुप धारण करके अवतरित होने के कई कारण है। एक बड़ा कारण यह है कि जब भी उस ने इस धरती के पाप, अपने बच्चों के दुख-कष्ट अपने ऊपर ले कर उनका भुगतान करना हो तो वह आप ही आ जाता है। कोई और जन यह नहीं कर सकता, इसलिए वह स्वयं ही आता है।
बाबा नन्द सिंह साहिब भुच्चों की जूह में विराजमान हैं।वहां से कुछ दूरी पर एक गाँव में प्लेग की बिमारी फैल गई। वहां के लोग बिमारी की वजह से मरने लगे तो गांव निवासी गांव छोड़ने का सोचने लगे।
बाबा नन्द सिंह साहिब भुच्चों की जूह में विराजमान हैं, चलो, हम सब उनके पास चलते हैं।
सभी ने मिलकर गाँव के गुरूद्वारे में अरदास की।
किस के आगे ? श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे।
सच्चे-पातशाह, बहुत बड़ी विपदा में हैं, मौत के मुहाने पर खड़े हैं।
सच्चे-पातशाह, कृपा करो, हमें बचाओ।
गरीब निवाज़, हम अब बाबा नन्द सिंह साहिब के पास जा रहे हैं।
भले लोगो, आप की विनती तभी स्वीकार हो गयी थी जब आप ने रो कर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के समक्ष अरदास की थी। यहां आने की क्या ज़रुरत थी।
जाओ, वापिस अपने गाँव लौट जाओ। गाँव में अब बीमारी से कोई नहीं मरेगा। गाँव छोड़ कर कहीं और जाने की ज़रुरत नहीं है।
थोड़ी देर बाद जैसे ही बाबा नन्द सिंह साहिब ने अपना दायाँ चरण अपने बाएं चरण पर रखा तो उनका चोला () थोड़ा सा सरक गया। सब ने देखा कि उनकी दायीं टाँग प्लेग के दागों से भरी हुई थी।
जाओ, आप की अरदास तो तभी स्वीकार हो गयी थी।
देखो गुरमुखो, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की सेवा ज़ाहरा-ज़हूर, हाज़रा-हज़ूर होनी चाहिए।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पर श्रद्धा रखने वाले सब कुछ पा लेते हैं। आप जो वि विनती, अरदास उन के समक्ष करते हैं, वह ज़ाहरा-ज़हूर, हाज़रा-हज़ूर होनी चाहिए।
फ़रमाया-
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब प्रत्यक्ष, हाज़र-नाज़र सतिगुरु हैं।
देखो, जिस श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे आज आप ने अरदास की है और करते हो,
उन्ही श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के समक्ष हम भी अरदास करते हैं।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी ने यदि हम से कोई कार्य करवाना होगा तो
हमें कान से पकड़ कर उठा लेंगे और और वह कार्य करवा लेंगे।
गुरमुखो, हमारे पास आने की ज़रुरत नहीं है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के समक्ष रो के विनती किया करो।
बाबा नन्द सिंह साहिब यह शिक्षा/ज्ञान दे रहे हैं।
साध-संगत जी, बाबा नन्द सिंह साहिब ने फ़रमाया -
जब तक हमें श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के वचनों पर विश्वास नहीं है हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
साध-संगत जी,
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब दस पातशाहियों की हाज़र-नाज़र जागृत ज्योति है।
दस पातशाहीआं कहाँ विराजमान हैं? कहाँ सुशोभित हैं?
मेरे आठवें पातशाह, आठवें गुरु नानक, गुरु हरिकृष्ण साहिब कहाँ जलवा-फ़िरोज़ हैं?
साध-संगत जी,
प्र्त्येक वर्ष पिता जी के साथ गुरु हरिकृष्ण साहिब के प्रकाश-उत्सव पर गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली जाने का अवसर मिला। वहां पिता जी के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब ही ठहरना।
पिता जी ने गुरु हरिकृष्ण साहिब के प्रकाश-उत्सव की स्मृति में श्री अखंड पाठ साहिब करवाना और तीन दिन वहां पूरी सेवा करनी। गुरुद्वारा बंगला साहिब में अमृत वेले (ब्रह्म महूर्त) के सुखमनी साहिब के पाठ में उपस्थित सारी संगत की सेवा पिता जी अपने ऊपर ले लेते थे।
साध-संगत जी,
आठवें पातशाह ने पिता के साथ बड़ी लीलाएँ की। जिनके बारे में पिता जी कम ही बताया करते थे। परन्तु एक बात जो उन्होंने बताई वो मैं आप सब के साथ साँझा करना चाहता हूँ।
पिता जी ने फ़रमाया -
देखो पुत्र, यहां यह दरगाही धुन....
श्री हरिकृष्ण धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाए॥
यह धुन यहां बजती रहती है। और कितनी मस्ती आती है उसे सुन कर। पर तुझे पता नहीं...... । देवते, दरगाह .. सब में से यह धुन आ रही है और भाग्यशाली जनों को ही सुनाई देती है। यदि यह गगनमयी संगीत, यह धुन किसी को एक बार भी सुनाई दे जाये तो सारे जीवन में मस्ती से भर देती है।
हिरदै नामु वसाइहु ॥
घरि बैठे गुरू धिआइहु ॥
गुरि पूरै सचु कहिआ ॥
सो सुखु साचा लहिआ ॥
आगै सुखु गुरि दीआ ॥
पाछै कुसल खेम गुरि कीआ ॥
सरब निधान सुख पाइआ ॥
गुरु अपुना रिदै धिआइआ ॥
परभाते प्रभ नामु जपि गुर के चरण धिआइ ॥
जनम मरण मलु उतरै सचे के गुण गाइ ॥
गुर के चरन मन महि धिआइ ॥
छोडि सगल सिआणपा साचि सबदि लिव लाइ ॥
श्री गुरु अरजन देव जी
गुरु नानक दाता बख्श लै, बाबा नानक बख्श लै।
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