विदाई का इलाही तोहफ़ा- पवित्र पादुकायें
अगस्त 1943 में महान बाबा जी के शारीरिक रूप से विदा लेते समय हम पवित्र ठाठ (कुटिया) पर उपस्थित थे। बाबा जी की पवित्र देह को अन्तिम दर्शनों के लिए बारांदरी में रखा हुआ था। मेरे पूज्य पिताजी व परिवार के अन्य सदस्य उनके निकट ही खड़े थे। सुबह का समय था और हमारा पूरा परिवार पौ फटने से पहले ही वहाँ पहुँच चुका था। संगत को अभी दर्शनों की आज्ञा नहीं मिली थी। अपने प्रीतम से बिछुड़ने की अकथनीय और असह्य पीड़ा हम सभी के लिए अत्यन्त दुःखदायी थी। हम सभी की आँखों से निरन्तर आंसू बह रहे थे। विशेष रूप से पिताजी की हालत अति दयनीय थी। वे एक बच्चे की तरह व्याकुल होकर बिलख रहे थे। उनके लिए बाबाजी से शारीरिक वियोग का दुःख असह्य था। ज़िंदगी अब उनके लिए मौत से भी ज्यादा दुःखदायी थी। वे मृत्यु की कगार पर बैठे हुए लग रहे थे और साथ-साथ श्री गुरु अंगद साहिब के पवित्रs ‘सबद’ का आलाप करते जा रहे थे-
जिसु पियारे सिउ नेहु तिसु आगै मरि चलिऐ।ध्रिगु जीवणु संसारि ता कै पाछै जीवणा।।
पिताजी ने मुझे संकेत किया। मैंने महान बाबा जी की पवित्र पादुकाओं को उठाया और अपनी पगड़ी में लपेट कर उन्हें अपने सिर पर रख लिया। पिताजी ने वहाँ उपस्थिति सेवादारों को इस बारे में सूचित किया और फिर आज्ञा ले के इन पवित्र पादुकाओं को अपने साथ ले आए।
बाबा नरिन्दर सिंह जी के लिए उनके प्रीतम की ये पवित्र पादुकाएँ उनका जीवन बन गयीं। शेष पूरा जीवन उन्होंने बाबा नंद सिंह जी महाराज की चरण-पादुकाओं की ही पूजा की। बाबा नंद सिंह जी महाराज की ये पवित्र पादुकाएँ बाबा नरिन्दर सिंह जी के जीवन की बहुमूल्य सम्पति थीं, जो स्वर्ग और धरती के किसी भी राज्य से भी अधिक कीमती थी।
बाबा जी की चरण-पादुकाओं के लिए उनकी भक्ति, पूजा और प्रेम, उनके आँसू थे; जोकि सदानीरा नदियों की तरह बहते रहते थे।
पूज्य पिताजी प्रायः आनन्दविभोर होकर अपने परम पूज्य इष्ट की चरण पादुकाओं की असाधारण पूजा करने वाले भक्तों के दिव्य वृतान्त सुनाया करते थे।
मार्च 1983 में अपनी भौतिक विद्यमानता के अन्तिम पलों में पिताजी ने मेरी बड़ी बहन बीबी अजीत कौर को बाबा नंद सिंह जी महाराज की पवित्र चरण-पादुकाओं को लाने के लिए कहा। बिस्तर पर लेटे-लेटे ही पूज्य पिता जी ने अपने प्रीतम की पादुकाओं को अपने उज्ज्वल-उन्नत ललाट पर श्रद्धासहित सुशोभित किया और अपनी अन्तिम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्होंने शरीर त्याग दिया। अपनी अन्तिम श्वास उनके सम्मुख लेते हुए वे उन्हीं पवित्र चरण-पादुकाओं में विलीन हो गए।
गुरु नानक दाता
बख्श लै। बाबा नानक बख्श लै॥
द्वारा – ब्रि. प्रताप सिंह जी जसपाल
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