मिहरवानु साहिबु मिहरवानु साहिबु मेरा मिहरवानु



ब्रि. प्रताप सिंह जसपाल जी का व्यक्तिगत अनुभव

यह घटना पांचवें दशक के आरम्भिक दिनों की है। मेरी पूजनीय माता जी अत्यन्त बीमार हो गई थीं। उनकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी। उन्हें अमृतसर के विक्टोरिया जुबली अस्पताल में भरती कराया गया था, जो अविभाजित पंजाब का उस समय का एक सुप्रसिद्ध अस्पताल था। राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त दो योग्य डाक्टर, डॉ. के. एल. विज और कर्नल डॉ. गुरबख़्श सिंह उनका इलाज कर रहे थे।

 माता जी के लिए एक विशेष कमरे की व्यवस्था की गयी थी। बेहतर इलाज के बावजूद माता जी की तबीयत धीरे-धीरे और बिगड़ती ही जा रही थी और फिर एक दिन वह अचेत हो गयीं। उनकी इस अवस्था के दूसरे दिन डाक्टरों ने उनके स्वस्थ होने की आशा छोड़ दी। पिता जी को यह बता दिया गया कि यदि वे घर पर ही अपनी पत्नी की मृत्यु देखना चाहते हैं तो मरीज़ को छुट्टी दी जा सकती है।

तीसरा दिन भी यूं ही अचेत अवस्था में बीत गया। हम सभी किसी भी क्षण अंतिम श्वास लिए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अचानक उन्होंने अपनी आंखे खोली और अपनी दायीं ओर संकेत करते हुए मेरे पूज्य पिताजी से कहा कि बाबा नंद सिंह साहिब स्वयं पधारे है और उनकी इच्छा है कि मैं आप सबसे विदा लेकर उनके साथ चलूं।
मेरी छोटी बहन बीबी भोला रानी ने बिस्तर के दायीं तरफ़ रखे सोफे़ पर महान बाबा जी के आसन हेतु एकदम साफ़ धुली चादर बिछाते हुए कहा- 
बीजी, आप बाबा जी से अपने लिए जीवनदान क्यों नहीं माँग लेते?
माता जी ने बाबा नंद सिंह जी महाराज की ओर देखा तथा कहा- 
बाबा जी पूछ रहे हैं कितना जीवनदान और चाहिए? 
बीबी भोला रानी ने तुरंत कहा- बीजी, छह महीने और। 
बीजी ने फिर बाबा जी की ओर देखा तथा कहा कि बाबाजी महाराज ने उन्हें छह महीने का समय दे दिया है। अब वे छह महीने बाद फिर आएँगे। ऐसा कहने के साथ ही माता जी उठ कर बिस्तर पर बैठ गयीं। हम सभी श्रद्धा और आश्चर्य से भर उठे। हम सभी ने बाबा जी के पवित्र आगमन और उपस्थिति से वातावरण में व्याप्त दिव्यता को अनुभव किया।
पिता जी ने अपनी कार मंगवाई और पुलिस इन्स्पेक्टर स. मेहर सिंह को अस्पताल के बिलों के भुगतान के विषय में ज़रूरी निर्देश दिए। तत्पश्चात् माता जी को साथ लेकर हम लुधियाना के लिए रवाना हो गए।
घर में आकर माता जी ने साधारण काम-काज करना शुरु कर दिया। सभी बहुत प्रसन्न थे। बीबी भोलां रानी ने माता जी को सुझाव दिया कि हम इस बार फिर बाबा जी से लम्बी आयु के लिए विनती करेंगे। 
तत्पश्चात बाबा जी ने फिर एक बार माता जी को दर्शन दिए और फरमाया कि वे जितनी चाहें उतनी आयु प्रदान कर सकते हैं, किन्तु पहले उन्हें (माता जी को) वह स्थान अवश्य देख लेना चाहिए, जहाँ बाबाजी उन्हें ले जाना चाहते हैं।

 बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र धाम के दर्शन कर लेने के बाद माता जी की जीवन दृष्टि में आश्चर्यजनक परिवर्तन दिखाई देने लगा। वे एक अनूठे धैर्य, दिव्य कृपा और अलौकिक प्रेम से भरे संसार में विचरण करने लगी थीं।

उन्होंने पिता जी को इस दिव्य अनुभव के विषय में बताया और कहा कि अब वे इस संसार को त्यागने की इच्छा रखती हैं।

छह मास पूरे होने पर पिताजी ने कीर्तन की व्यवस्था की। निश्चित समय आ पहुँचा था।
समयानुसार सच्चे पातशाह श्री गुरु नानक साहिब और बाबा नंद सिंह जी महाराज कृपास्वरूप पधारे। पिताजी ने माताजी से उनकी अन्तिम इच्छा के बारे में पूछा। उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि उनकी जीवन-मुक्ति (शरीर-त्याग) के बाद उनके द्वारा संचित पाँच हजार रुपए व उनके गहनों से प्राप्त राशि महान बाबा जी की सेवा को समर्पित व खर्च की जाए।
मेरी बड़ी बहन अजीत कौर के अतिरिक्त, शेष सभी बच्चे, जिनमें मेरी दो छोटी बहनें भी शामिल थीं, विवाह योग्य थे। पर, माता जी के मन में संसारी रिश्तों का मोह नाम-मात्र भी दिखाई नहीं दे रहा था। महान बाबा जी ने उनको सांसारिक मोह-माया जाल से मुक्त कर दिया था। वे बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रति अपने सच्चे प्यार और भक्तिभाव में डूब कर संसारी बंधनों को भूल गयीं थी।
यह एक भव्य अन्तिम यात्रा थी। एक दरगाही पालकी में श्री गुरुनानक पातशाह और बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों में विराजमान होकर माता जी इस मृत्यु-लोक से विदा हुई थीं। सचखण्ड की सच्ची यात्रा का यह एक सच्चा व आनन्दमय दृष्टान्त था।

 दुनिया से विदा लेते और बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों में निवास करते समय माता जी के चेहरे पर प्रसन्नता एवं आनन्द के अलौकिक भाव आश्चर्यजनक रूप से झलक रहे थे। उस समय माताजी के दर्शन, साक्षात् महान देवी के दर्शन सरीखे थे। वह देवी माता, जो बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणों में निवास किए हुए थी। 

यह बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों तथा उनकी कृपा का ही कमाल था। यह पिताजी तथा हम सबके लिए आश्चर्यजनक अनुभव था। मेरे मित्र स. राजिन्दर सिंह के पिता जी, जो मेरे घर पहली बार आए थे और संगत में बैठे हुए थे, उन्होंने भी पवित्र कीर्तन का श्रवण करते इस घटना, वृत्तान्त को अपनी आँखों से देखा और हृदय से अनुभव किया था।

उन्होंने इस अनुभव को ठीक उसी तरह सुनाया, जैसा हम महसूस कर रहे थे।
कबीर जिसु मरने ते जगु डरै मेरे मन आनंदु।
मरने ही ते पाईऐ पूरनु परमानंदु।।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 1365

गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥ 

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