ख़ुदाई ते सफ़ाई दा मेल है।
अपने शरीर और निजी वस्त्रों, भेंट योग्य सभी पदार्थों, पूजा की वस्तुओं और पूजा के स्थान की स्वच्छता और शुद्धता जरूरी है।
अपने अशुद्ध शरीर और अपवित्र मन से हमें कितनी घृणा महसूस होती हैं तो अति पावन परमात्मा की अपवित्र सेवा, अस्वच्छ चढ़ावा और दूषित पूजा करते समय हम स्वयं को कितना दुखी महसूस करेंगे।
परमात्मा ने हमें असंख्य पदार्थ दिए हैं। परमात्मा को भेंट की जाने वाली प्रत्येक वस्तु हमारी नहीं, बल्कि उसी द्वारा प्रदान की गई है। इसलिए किसी भी वस्तु पर ना तो हमारा अधिकार है और ना ही परमात्मा को इन वस्तुओं में से किसी एक की भी जरूरत है।
परमात्मा केवल एक ही दुर्लभ पदार्थ के लिए लालायित रहते है और वह है विशुद्ध प्रेम।
इसलिए परमात्मा के प्रति हमारा व्यवहार प्रेमपूर्ण होना चाहिए। उसकी सेवा करें तो प्रेम से, पूजा अर्चना करें तो प्रेम से, स्तुति करें तो प्रेम से। उसके दर्शन करें तो भी प्रेम भाव से करें- बिना किसी इच्छा और स्वार्थ के। हमें जितनी जरूरत परमात्मा की है उससे कहीं अधिक लालसा उसे हमारे शुद्ध, निःस्वार्थ और निर्मल प्रेम की है।
इसलिए हमें सतिगुरु की सेवा और पूजा अति उत्तम तरीके से करनी चाहिए और सांसारिक वस्तुओं के प्रति ‘‘मैं और मेरा’’ भाव से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसे समर्पण से ही हम गुरु के और गुरु हमारे हो जाते हैं।
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