नाम

सारे जीवों और सृष्टि का एक मात्र सहारा नाम है। नामी को अनुभव करने अथवा नामी को पुकारने के लिए नाम दोहराया जाता है। नाम, नाम लेने वाले को नामी से जोड़ना है। नाम भक्त को भगवान से जोड़ता है। नाम उपासक से पूजनीय के सच्चे संबंध को पक्का करता है। परमात्मा का दिव्य नाम ‘गगनमय संगीत’ है। यह ब्रह्माण्ड का दिव्य संगीत है। यह अनन्त संगीत है। यह आत्मा को आनंदित करने वाला संगीत है। नाम के जहाज श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित सारे राग आत्मिक भाव से परिपूर्ण दिव्य नाम की स्तुति करते हैं। ब्रह्माण्डीय एकस्वरता और प्रेमयुक्त यह अलौकिक संगीत सभी जीवों को दिव्य आनंद से पवित्र कर रहा है। ईश्वरीय नाम के बराबर इस संसार में अन्य कुछ भी नहीं है। सम्पूर्ण चल और अचल सृष्टि नाम की शक्ति से उत्पन्न हुई है। संसार के सभी तत्त्व, जिनमें प्रकृति भी शामिल है, नाम की शक्ति से जुड़े हैं। परमात्मा और उसका नाम समरूप है। दोनों एक ही हैं। इस कलियुग में ईश्वर का दिव्य नाम सर्वशक्तिमान है। इस दिव्य नाम का स्मरण करने से बड़े-से-बड़े पापी भी एक पल में मुक्त...