जेहा भाउ तेहा फलु पाईऐ - गुरु नानक पातशाह का स्वभाव



बाबा नंद सिंह साहिब के चरणों में इस सेवक ने ईश्वरीय आनन्द की अनुभूति की, उनके अमूल्य वचन सुनें।
एक बार बाबा नंद सिंह साहिब संगत में विराजमान थे। जिस समय कीर्तन का भोग पड़ा, बाबा नंद सिंह साहिब ने अपने पावन नेत्र खोलकर देखा, नेत्र ऐसे जैसे उनकी दृष्टि से अमृत झर रहा हो, चारों ओर एक अमृतमय वातावरण छा गया हो।
साहिब की दृष्टि कुछ नवागत सरदारों पर पड़ी, जो पहली बार आए थे और रागी सिंहों के पीछे बैठे थे। साहिब बड़े प्रेम से पूछते हैं –
कहाँ जाना पसंद करोगे? कहाँ रहना पसंद करोगे?
वे समझे नहीं।
बाबा जी ने फिर दोहराया - कहाँ जाना पसंद करोगे, कहाँ रहना पसंद करोगे?
एक निकटस्थ संगी ने हाथकर जोड़कर कहा- गरीब निवाज! आप ही मेहर करें।
इस पर बाबा जी फरमाते हैं-
आप वहाँ जाना पसंद करेंगे जहाँ प्रेम-सत्कार से ले जाएगा? वहाँ रहना पसंद करेंगे जहाँ कोई आपको प्रेम-सत्कार से रखेगा।
सभी ने हाथ जोड़कर कहाँ- जी गरीब निवाज।
बाबा नंद सिंह साहिब ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की ओर संकेत करते हुए कहा-
यही स्वभाव मेरे गुरु नानक पातशाह का है। वे उसी घर जाते हैं जहाँ कोई प्रेम-सत्कार से ले जाए और वहीं रहते है जहाँ कोई सत्कार-प्रेम से रखे।
एक रहस्य का समाधान कर रहे थे बाबा नंद सिंह साहिब। फिर उन्होंने आगे फरमाया-
लोग मेहमानों के प्रति तीन तरह का व्यवहार करते हैं। जिस कोटि का मेहमान होता है उसे वैसा व्यवहार मिलता है।
1. जैसे कोई आपकी जमीन पर काम करने वाला नौकर कोई संदेश लेकर आ जाए तो लोग उसे दूर से ही नौकरों के कमरे में जगह दे देते हैं, अपने नौकरों के साथ। नौकरों के लिए भेजे गए थाल में उसका भोजन भी रख दिया जाता है।
2. यदि कोई बराबर का मित्र या रिश्तेदार आ जाए तो उसे बराबर का दरजा देते हैं, जैसे स्वयं रहते हैं उसी तरह की व्यवथा करते हैं उसे अपने साथ ही भोजन कराते हैं।
3. यदि कोई अपने से बड़ी प्रतिष्ठा का आदमी या अफसर आया हो या कोई आदरणीय बुजुर्ग आया हो तो उसी के अनुरूप उसके ठहरने की व्यवस्था और खाने-पीने की व्यवस्था का प्रबंध् किया जाता है।
बाबा नंद सिंह साहिब फरमाने लगे-

  • लोग यही तीनों तरीके मेरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब, मेरे इस जीते-जागते बोलते गुरु नानक साहिब के लिए व्यवहार में लाते हैं। कइयों ने तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब को Servant Quarters में स्थान दिया है, किसी ने स्टोर रूप में, किसी ने गैराज में रखा है। स्टोर रूम में भी वहाँ रखा है जहाँ कोई चीज नहीं रखी जा सकती। जिस जगह का उपयोग नहीं हो रहा है वहाँ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश कर दिया है। कइयों ने सीढ़ी के नीचे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश कर दिया है।
  • कुछ ऐसे हैं जिन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को बराबर का दरजा (स्तर) दिया हुआ है। जिस तरह वे स्वयं रहते हैं उसी तरह श्री गुरु ग्रंथ साहिब को रखते हैं।
  • पर कुछ ऐसे भी हैं जो सर्व कला समर्थ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को अति उच्च स्वामी का दरजा देकर स्वयं दास्य भाव से उस घर में रहते हैं।

 बाबा नंद सिंह साहिब फरमाते हैं-

    • जो गुरु को घर में लाकर नौकर कक्ष में रखते हैं, गैराज में रखते हैं ऐसा सिक्ख तो गुरु का हिसाब जनम-जन्मान्तर तक नहीं उतार सकता।
    • पर जिसने बराबर का दरजा दे दिया है वह यह सोचता है कि जिस स्तर पर मैं रहता हूँ कम-से-कम उसके अनुरूप गुरु का मान रखूँ। ऐसा करके वह सोचता है कि इसमें कोई हानि तो नहीं है तो इसका कोई लाभ भी नहीं है। यदि गुरु को बराबर का दरजा दे दिया है तो इसमें लाभ भी क्या होगा?
    • पर जिसने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को मालिक समझकर, सर्वकला समर्थ समझकर, जीता-जागता-बोलता श्री गुरु नानक समझकर प्रेम और सत्कार के साथ अपने घर में मालिक के रूप में प्रतिष्ठ किया है, सेवा कर रहा है तो लाभ-ही-लाभ है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को जिसने घर के मालिक के रूप में रखा है ऐसे व्यक्ति को कहीं भटकने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मालिक घर में ही विराजमान हैं।
यह तरीके बता रहे हैं बाबा नंद सिंह साहिब, वे समाधन प्रस्तुत कर रहे हैं।
गुर दरसनि उधरै संसारा॥   
जे को लाए भाउ पिआरा ॥
भाउ पिआरा लाए विरला कोइ॥  
गुर कै दरसनि सदा सुखु होइ ॥

सतिगुरू सदा दइआलु है भाई विणु भागा किआ पाईऐ ॥
एक नदरि करि वेखै सभ ऊपरि जेहा भाउ तेहा फलु पाईऐ ॥
 
सतिगुरु पुरखु दइआलु है जिस नो समतु सभु कोइ ॥
एक द्रिसटि करि देखदा मन भावनी ते सिधि होइ ॥
सतिगुर विचि अम्रितु है हरि उतमु हरि पदु सोइ ॥
नानक किरपा ते हरि धिआईऐ गुरमुखि पावै कोइ॥
श्री गुरु रामदास जी
‘एक बार बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के विषय में यदि कहीं हमारी रसना से, हमारी जुबान से कागज अथवा किताब का शब्द निकल जाए तो हमारी रसना जल जाए, हमारी जिह्ना झुलस जाए।
साध् संगत जी!
यह कैसा प्रेम कर रहे हैं, बाबा नंद सिंह साहिब। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की कैसी सिक्खी कमा के दिखा रहे हैं।

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

गुरु नानक दाता बख़्श लै।। बाबा नानक बख़्श लै।।


गुरु नानक दाता बख़्श लै।। बाबा नानक बख़्श लै।।

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