जेवडु आपि तेवडु तेरी दाति - जितने महान स्वयं उतनी महान तुम्हारी दात

 

पोथी परमेसर का थानु ॥

साधसंगि गावहि गुण गोबिंद पूरन ब्रहम गिआनु॥

जिसहि क्रिपालु होइ मेरा सुआमी पूरन ता को कामु॥

साधिक सिध सगल मुनि लोचहि बिरले लागै धिआनु॥

जा कै रिदै वसै भै भंजनु तिसु जानै सगल जहानु॥

खिनु पलु बिसरु नही मेरे करते इहु नानकु मांगै दानु॥

 श्री गुरु ग्रंथ साहिब 1226 

बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया- 

दान अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार होता है, जिस तरह का सामर्थ्य हो उसी तरह का दान मनुष्य कर सकता है। एक राजा है बड़ा दान देना चाहता है। वह ज्यादा-से-ज्यादा यह करेगा कि अपना राजपाट दान में दे देगा। जो कुछ उसके पास है वह दान में दे सकता है, पर किसी ने निरंकार की सामर्थ्य का माप लिया है। आज तक किसने अकाल पुरख पारब्रह्म के सामर्थ्य का आंकलन किया है। आज तक उसका अनुमान हो सका है?

जेवडु आपि तेवडु तेरी दाति 

जितना बड़ा वो हो सकता है उतना बड़ा दान वो दे सकता है, पर निरंकार का बड़प्पन तो अपरिमेय है। 

गुरु नानक पातशाह दात बख़्शना चाहते हैं, गुरु अंगद साहिब की सेवा से वे बड़े प्रसन्न हुए हैं, बहुत खुश हैं। मेरे साहिब गुरु नानक पातशाह प्रसन्न होकर उस दात में अपने आपको गुरु अंगद साहिब के रूप में उतार देते हैं। साहिब स्वयं को गुरु अंगद साहिब में प्रकाशित कर देते हैं। 

इसी प्रकार गुरु अंगद साहिब अपने आपको गुरु अमरदास में अवतरित कर देते हैं। गुरु सहित प्राप्त उस दात को गुरु अमरदास जी गुरु रामदास जी में रूपाकृत करते हैं। गुरु रामदास जी उस दात को, बख़्शीश को, अपने निरंकार स्वरूप को गुरु अरजुन साहिब में साकार करते हैं। जगत के उद्धार के लिए वह निरंकार अब साहिब गुरु अरजुन पातशाह के रूप में अवतार लेकर आए हैं- 

ततु बिचारु यहै मथुरा जग तारन कउ अवतारु बनायउ॥
 श्री गुरु ग्रंथ साहिब अंग 1408 

साध् संगत जी! 
जिस समय भी निरंकारस्वरूप गुरु नानक पातशाह और गुरु अरजुन पातशाह किसी महापुरुष को इस संसार में भेजते हैं तो उनका प्रयोजन किसी सांसारिक उपलब्धि और प्राप्ति से नहीं होता, बल्कि वे तो संसार को मुक्त करने के लिए आते हैं। 

जनम मरण दुहहू महि नाही जन परउपकारी आए॥
जीअ दानु दे भगती लाइनि हरि सिउ लैनि मिलाए॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब अंग 748 

परमात्मा द्वारा भेजे गए महापुरुष संसार को देने के वास्ते अवतरित होते हैं, वे कुछ लेने नहीं आते। गुरु अरजुन पातशाह संसार को तारने के लिए आते हैं। वे अपने सामर्थ्य के अनुसार समाज को पार उतारने के लिए एक आध्यात्मिक तारनहार जहाज बनाते हैं, वे स्वयं और गुरु नानक पातशाह उसी ज्योति स्वरूप हरि को, निरंकार को, गुरु नानक को...

जोति रूपि हरि आपि गुरु नानकु कहायउ 

...किस प्रकार श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अवतरित करते हुए गुरु अरजुन पातशाह उनका पहला प्रकाश संसार के समक्ष प्रकट करते हैं

जोति रूपि हरि आपि गुरु नानकु कहायउ 

श्री गुरु ग्रंथ साहिब अंग 1409

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Nanak Leela Part -1) 

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